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________________ गया। माकन करना होता और बाधा स्माष्टमें मामालिखना को जापत कर बोक्न को सही शिक्षा पर जाना होगा सस बातावरण में पलता-फूलता बीवन का बहा वसन्त पृष्ठ एक दिन सब महक ळेवा व पावसाब हम अपनी बहिनों से इस विचार- विपर मान करने का विन माहल करते है। इन जिन सारे बिन्दुनों पर हमने गुट बर्षा की है। सब मारी गोल को पान्दोलित करने वाले हैं। जैन संसति की मूल पात्मा में नारी को कहीं हुकराया नही गया बल्कि उसकी शक्तिको पहिचाना गया, पहिचानने के लिए प्रेरित किया गया । परन्तु उत्तरकाल में परिस्थिति-पस उसकी प्यास्याएं परिवर्तित होती रही भोर नारी के व्यक्तित्व के हर कोने पर रोंपर्क की मोटी परतें समा गई। जापत चेतना को हठात् या बलात् महानता का पातावरण रेकर उसे सुप्त का दिया गया। बहारदीवारी के भीतर उसे मात्र मलंकार का साधन बना दिया गया। दूसरों के निर्णय पर उसका बीवन तरने लगा, मावदेवट कोई मोरया। वह माम पुतलीम बेग दी गई। उसी पुतनी को पक्किार में लाने के लिए इतिहास में न जाने कितना खून बहा मोर मांगों के सिन्दूर से नदियो रक्तिमा मय समय कुछ पलटाबा हा है वहां नारी की सुप्त बेतमा को अमल होने का वातावरण उपलब्ध होने ममा है। पातो वस्तुतः उसकी अस्मिता का प्रश्न है। उसे तो हर सही पुरातन परम्परा को विद्रोह के गही स्वर मे भूलसा कर प्रगति के परयो को प्रशस्त करमा है । म संसाति की प्रामारिनक चेतमा इस स्वर को संयमित करेगी पोर उसे विद्रोह की कठोरता तथा प्रसासाविकता के पनम्बरों को तहस-नहस कर पिक और सामाजिक वषा नैतिक तत्वों से जोड़े रखेगी, ऐसा हमारा विश्वास पाश्चात्व सम्पदा के दुषित रंग मे परिमारी समाजको पीला बना दिया तो 'पुनषको प्रब' की कमा परितार्य होने में भी अधिक समय नहीं अमेवा। वह संक्रमण की बाबा नारी की स्वयं की शक्ति उसकी वर्ग चेतना उसके विवेक पर प्रतिष्ठित होनी है। महावीर की पाली रस विजकको स्वयं बंदुर बनाने के लिए पर्याप्त हैरों उसे बही विधा में समका-समझाना पाये।हा. पौर का "पडनं मा सो स्था" सूप महिला पर के बीवन मे साबोक्षित करने मा सिड होना। भान और भारत के उज्यान में रहने वालनिरता, परिवल, संवम और सजाव की ना शिक्षित होऔर मष्टिबाट करि मायापिकवना कम भावान
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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