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________________ भीमामापीर के अपरिमारोपति बपने जीवनसार सोमव्याक इन अटाचाराविनायक felam पासप्रतिको कारण है।कारी इस सरकार को दूर कर परिवहम्पनी मनीति में परिवर्तन करने। परिवार को सुखी बनाने इस प्रकार का मानसिक परिवर्तन प्रत्वावस्यक है। ० महापौर के परिवार का यही स्वर है। x इतिहास के पृष्ठ उलटने पर यह बात किसी से छिपी नहीं रहती कि प्राचीन काल में नारी की क्या स्थिति थी। वैविक काल की नारी मूलतः भोमा पीपर उत्तरकाल में उसे धर्मचारिणी बना दिया। इसके बावजूद उसका भोग्या स्म समार नहीं हो पाया भोग्या रूप से सहनारिणी तक माते-आते नारी ने शतावियां बिता दी हैं। भ. महावीर और महारमा दुर ने उसकी स्थिति पर गम्भीरता पूर्वक सोचा और उसे यथोचित स्थान देने का बीड़ा उठाया। चूंकि समाज के इस वर्ष में एक नई क्रान्ति थी इसलिए इन महामहिम क्रान्तिकारी व्यक्तित्वों को भी निश्चित ही अनेक प्रकार के विरोषो का सामना करना पड़ा होगा । परन्तु उन विरोषो को सहते हए भी महावीर ने नारी को लगभग वही अधिकार देने की पेशकश की जो मातारयतः पुरुषवर्ग को था। नारी की भोर से बुद्ध के समक्ष प्रानन्द वकील बनकर सरे हुए पर महावीर के समक्ष नारी को अपना कोई वकील करना पड़ा हो, ऐसा पता नहीं चलता लगता है, महावीर बुद्ध की अपेक्षा नारी के विषय में की मधिक उदार ये । बदनवाला के जीवन की पार्मिक षटनामो को क्या हम उसमय को नारी विकट परिस्थिति का प्रतीक नही पा सकते ? बन्दनवाला के हाथ पर बांधकर जेल में डाल दिया जाना उस समय की स्थिति को इंगित करते। महावीर वारा चन्दना का उद्धार किया जाना और उसे संघ में दीक्षित डोजाना नारी स्वातंत्र्य का प्रतीक है । उसे हम प्रतीक माने या न माने पर यह निश्चित है कि महावीर जसे कान्तिकारी व्यक्तित्व ने नारी की दुरवस्था पर मांस बार बहाये होग।मासद मगरमच्छ के प्रांसू नहीं रहे होंगे बल्कि एक कर्मठ क्रान्तिकारी मानवतावादी भागनिक का संवेदनशील प्रगतिवादी कदम रहा होगा जिसने नारी पर्व के स्पन्दन को जांचा, परसा और उसे सहलाया। नारी को दिये गये इस स्वातन्य ने उसमें मात्मचक्ति बापत की। माम. मक्तिका बामरण उसके जीवन की महान् सफलता का साधन बना । उसकी उस पात्लक्ति ने उसे मोक्ष तक पहुंचा दिया । मोल ही नहीं बल्कि तीर्थकर बनाकर ठा परन्तुमारीको स्थिति का यह परिवर्तन स्थायी नहीं पा । बोड़े समगार हमारी भावनाको शिरवोपलिया सेवनानको
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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