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________________ ios परम्परा से नारी एक मूक दर्शिका रही है। अधिकार देने वाला और अभिकार affe बाजा युवा वर्ष ही रहा है। सभी की पार मापन या समतावादी जैन धर्म और समाज में यह विषमताका दृष्टिको निश्चित हो वैदिक संस्कृति को प्रभाव कहा जायेना मीर उससे भी कहीं पुरुष ajit rare fम्मेदार है। भद्धा भक्ति के धावेव ने नारी को पोर उसे कुचलने के लिए मानिक नियमों के कठघरे में भी उसे बन्द क क को को मांज वस्तुतः इन परम्पराधों के पुनर्मूल्याकन की माता है Hareer है ferfar की देहली पर बड़े होकर नारी की प्रतिमा और समझने की तथा उसे संयोजित और सुव्यवस्थित करने की। वर्तमान मां देखने पर ये प्राचीन परम्परायें ध्वस्त-सी प्रतीत होने लगती हैं । ज्ञान की मरी ere are state प्रतिभा सम्पन्न सिद्ध कर रही है। यदि उसे पुरुष वर्ग साधन उपलब्ध कराये मौर शास्त्रीय कल्पनाओं से दूर हटकर उसके मे हाथ बढ़ाये तो समाज के मारी वर्ग का समूचा उपयोग हो सकता है भगवान महावीर का समतावादी और पुरुषार्थयादी दृष्टिकोण नारी शक्ति को जाग्रत करने के लिए पर्याप्त है। वह समूचे परिवार को एक आदर्शमयी वात- ' वरण देकर उसमे नये जीवन का संचार कर सकती है । प्रहिसा, सत्य, 'स्तै, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की अमृतमयी विचारधारा उसको तथा उसके परिवार को सुखी और समृद्ध करने के लिए एक सशक्त साधन है । प्रतेकातवाद मोर' स्याद्वाद उसे पारिवारिक और सामाजिक, विद्वेष से मुक्त रख सकते हैं। जैन दर्शन के ये सिद्धान्त नारी जीवन को एक सुखद और सुरभिमय वातावरण देकर उच्चतम प्रगतिपथ पर पहुंचा सकते है । १* 1 7% x X X. 1 > fare पृष्ठों मे हमने जैन दर्जन की परिधि में नारी की स्थिति को है । वस्तुतः नारी मुक्ति प्राप्त करने की अधिकारिणी है या नहीं, इस सम्बन्ध हमारे वर्तमान जीवन से बहुत अधिक नहीं है । इस शास्त्रीय चर्चा का कोई विशेष उपयोग भी नहीं । वर्तमान संदर्भ में तो प्रश्न यह है कि नारी जीवन संरचना में अपना किस प्रकार का महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। म. बुद्ध ने मा तौर किसने मारा, क्यों मरा, कैसे मारा मादि प्रश्न ताभविक नहीं होते ।। सामयिक यह होता है कि पहले उसका तीर निकाला जाय, मरहम पट्टी की और फिर भले ही समागतं प्रश्नो पर विचार किया जाये। यदि प्रश्नों में गये तो उसकी मृत्यु स्वभावी है। इसी तरह नारी को कुचलने देवाने घटनायें दैनिक जीवन की मब-सी बन गयी हैं। इन दुर्घटनाओं से मुक्त हो refore से कर सकती है. यह प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण है । संसार की m * •
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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