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________________ [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ प्रश्न - " सूक्ष्मनिगोद सर्वत्र है यह ठीक है पर ७ वी { पृथ्वी के नीचे जो निगोद कही जाती है वह बादर निगोद है ।" " 3 ५४ ] ; उत्तर-ऐसा कहना भी उचित नही हैं। क्योकि वादर जीव विना आधार के रह नही सकते ऐसा सिद्धान्त है । गोम्मटसार जीवकाड गाथा १८३ मे लिखा है कि- " आधारे १ थूलाओ सव्वत्य णिरतरा सुहमा ।" वादर जीव आधार पर रहते हैं और सूक्ष्म जीव सर्वत्र विना व्यवधान के भरे हैं । स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा मे लिखा है कि पुण्णा वि अण्णा वि य थूला जीवा हवति साहारा । छविह सुहुमाजीवा लोयायासे वि सव्वत्य ॥ १२३ ॥ अर्थ - चाहे पर्याप्त हो या अपर्याप्त हो सव ही वादर जीव आधार के सहारे से रहते हैं । तथा पृथ्वी - जल अग्निवायु नित्य निगोद और इतरनिगोद ये ६ सूक्ष्म जीव लोकाकाश मे सव जगह भरे हैं । 20% नरक की ७ वी पृथ्वी के नीचे एक राजू प्रमाण क्षेत्र मे वातवलयो को छोडकर वाकी सारा स्थान निराधार f - है । और विना आधार के वादर शून्यमय जीव रहते +1 , नही है तो वहाँ वादर निगोद भी कैसे मानी जा सकती ६. प० माणिकचन्द जी न्यायाचार्य ने "तीन लोक का वर्णन" लेख में (सरल जैन धर्म) पृष्ठ १०६ मे ) लिखा है -अघो लोक मे सबसे नीचे एक राजू तक बावर निगोद जीव भरे हुए हैं और 4. उससे ऊपर छह राजुओ में सात पृथ्विय हैं ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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