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________________ अलब्धपर्याप्त और निगोद | " जनमिद्धात बोलम ग्रह " ग्रन्थमाला बीकानेर ) पृष्ठ १६ - २१ मे [ ४५ दूसरा भाग ( सेठिया जैन लिखा है - अनन्न जीवो के पिण्ड भूत एक जिनने प्रदेश है शरीर को निगोद कहते हैं । लोकाकाश के उतने सूक्ष्म निगोद के गोले हैं एक एक गोले मे असख्यात निगोद हैं एक-एक निगोद मे अनन्त जीव है । ये एक श्वास मे -- कुछ अधिक १७ जन्म मरण करते हैं, ( एक मुहूर्त में मनुष्य के ३७७३ श्वासो च्छ्वास होते है ) एक मुहूर्त्त मे ६५५३६ भव करते है, निगोद का एक भव २५६ आवलियो का होता है । सूक्ष्म निगोद मे नरक से भी अनन्तगुणा दुख ( अज्ञान से ) है । कु सत्तरस समहिया फिर इगाणु पाणम्मि हुति खुड्डुभवा । सगतीस सय तिहत्तर पाणू पुण इग मुहुत्तम्मि | पणसट्ठि सहस्स पणसय छत्तीसा इग मुहुत्त खुड्डुभवा । आवलियाणं दो सय छप्पन्ना एग खुडुभवे ॥ दिगम्वर आम्नाय मे जहाँ १८ वार जन्म-मरण बताया है श्वेताम्वर आम्नाय मे कुछ अधिक १७ वार बताया है । दिगम्बर आम्नाय मे क्षुद्रभवो की सख्या ६६३३६ बताई है तब श्वे० आम्नाय मे ६५५३६ वताई है दिगम्वर आम्नाय मे यह सख्या स्थावर और त्रस सभी लब्ध्यपर्याप्तको की बताई है किन्तु श्वेताम्वर आम्नाय मे इसके लिए सिर्फ एक निगोद शब्द का सामान्य प्रयोग किया है। दोनो आम्नायो मे इस प्रकार यह मान्यता भेद है ( यह भेद सापेक्षिक है दोनो की सगति सम्भव है ) महान् सिद्धान्त ग्रन्थ धवला मे निगोद का कथनभाग ३ पृष्ठ ३२७, भाग ४ पृष्ठ ४०६, ४०८ भाग ७ पृष्ठ
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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