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________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ६०५ (१०) जम्बू सामिचरिउ ( वीर कवि कृत) पृ० ४६ मज्झण्ण हो चरियाए पई सइ । (११) पउमचरिय ( गाथा ११ पर्व ८६ ) अह अन्नया कमाई साह मज्झण्ह देसयालम्मि । पउमचरिय (गाथा ३ पर्व ४) मज्झण्ह देसयाले गोचर चारेयणअभिगओनयर । घर पतिभमता दिट्ठो लोगेण तित्थयरो। (१२) "पुण्याश्रवकथाकोप" (पृ० २६६) मध्याह्न चर्यार्थं पुण्याश्रवकथाकोप (पृ० १२) यामद्वय तथा प्रवृत्य । पउमचरिय (गाथा १ पर्व २२) मज्झण्ह देसयाले नयर पविसरइ भिक्खट्ठ । (१३) पद्म चरित पर्व ६२ नभोमध्यगते भातावन्यदाते महाशया १५ शुद्धभिक्षं पणाला प्रसयितमहायुज्ञा १६ । (१४) वसुविन्दु प्रतिष्ठापाठ श्लोक ८१८-१६-विदध्युरुर्व विधिनाहि मध्य-दिने जिनाने चरु पूजनानि । (१५) रामचरित (भट्टारक सोमसेन पृ० ७६ मुनिसुव्रत भगवान् पारणे के लिए मध्याह्न मे राजग्रह नगर मे पहुंचे। (१६) धन्यकुमार चरित्र (भ० सकलकीतिकृत) अधिकार ४-मध्याह्न होते-होते अकृतपुण्य घर आया इतने मे ही वहाँ सुव्रत मुनिराज आहारार्थ आये । इस प्रकार ऊहापोह और प्राचीन-अर्वाचीन शास्त्रीय प्रमाणो के द्वारा एक स्वर से यही सिद्ध होता है कि जैन मुनियो का भिक्षाटन दिन में एक ही बार होता है और वह मध्याह्न मे ही इससे अलावा किसी भी ग्रन्थ मे पूर्वाह्न या अपराह्न मुनि का भिक्षाकाल नही बताया है। इसके विरुद्ध जब तक कोई सवल
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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