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________________ [ ६०३ साधुओ की आहारचर्या का समय ] १५ सब का मध्यभाग मध्याह्न हो जायेगा यह स्पष्ट है अतः इसके लिए कोशग्रथ के आधार की जरूरत नही है । क्योकि मूलाचार और अनगार धर्मामृत मे मुनि की दिनचर्या का विवरण देते हुए साफतौर पर दिन के मध्यभाग से आगे-पीछे की दो-दो घडिये भिक्षाकलाल की बताई हैं । ( इस काल मे माध्याह्निक देववन्दना का काल भी शामिल है ) मुलाचार, यशस्तिलकचम्पू और सोमसेन त्रिवर्णाचार मे लिखा है कि मध्याह्नकी देववन्दना करके गोचरी पर उतरे * इससे यह विषय और भी स्पष्ट हो जाता है | प्रश्नोत्तर श्रावकाचार मे ७ मुहूर्त यानी १४ घडी दिन चढने पर गौचरीकाल लिखा है । अर्थात् १५ घडी का आधा दिन होता है, उससे १ घडी पूर्व मे गोचरीकाल है । यहाँ प्रश्नोत्तर श्रावकाचार के कर्ता सकलकीर्ति ने मध्याह्न से पूर्व की २ घडी मे शायद १ घडी देववन्दना की काटकर १ घडी पूर्व का गोचरी काल लिखा है । यहाँ यह ध्यान मे रहे कि समरात्रि दिनका अहोरात्र मानकर यहाँ ७ मुहूर्त दिन चढना समझना । इस विषय में हमको और भी शास्त्र प्रमाण मिले है जो * साघु नगर मे आहारार्थं जावे न जाने किस सकट मे - उपसर्ग मे पड जावे और मध्याह्न की सामायिक से वंचित रह जाचे अतः मध्याह्न की सामायिक किये बाद बाहार पर उतरना बताया है - ऐसा ज्ञात होता है । प० पन्नालालजी सोनी ने भी ! क्रियाकलाप" की प्रस्तावना पृष्ठ पर लिखा है- वर्तमान के साधु आगम विपरीत देव धन्दना करते हुए देखे जाते है । जैसे - मध्याह्न वन्दना भी आहारोपरात करते हैं ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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