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________________ साधुओं की आहारचर्या का समय ] [ ५६१ वहाँ भी सामायिक के काल का परिमाण नही बताया है। मूलाचार मे अन्यत्र भी कहीं सामायिक के काल परिमाण का कथन नही है । इस तरह मूलाचार तो इस विषय मे मौन है। हां उसके प्रकारातर के कथन से हम सामायिक का काल लाना चाहे तो इस तरह ला सकते हैं कि मूलाचार की पञ्चाचाराधिकार की गाथा ७३ मे तीनो सध्याओ की आगे-पीछे की २-२ घडियो को अस्वाध्याय काल माना है। इन अस्वाध्याय कालों मे ही सामायिक की जा सकती है, सामायिक के अलावा वह मुनियो के आहार-नीहार का भी ये ही तीनो काल है। इनमे से प्रातः साय इन दो कालो मे तो आहार का निषेध किया है । अत. मध्याह्नकी आगे-पीछे की २-२ घडियोका कालही भिक्षाकाल रह जाता है उसीमे देववन्दना का भी कुछ काल शामिल है। शास्त्रो मे देववन्दना, कृतिकर्म और सामायिक शब्द प्रायः एक ही अर्थ मे भी प्रयुक्त किये हैं। क्योकि सामायिक शब्द च्यापक होने से उसमे साम्य भाव के साथ व्यवहार दृष्टि से देव चन्दना, पूजा, कृतिकर्म भी शामिल कर लिये है। देखोसागार धर्मामृत अ० ५ श्लोक २८, ३१ (स्वोपज्ञ टी० सयुक्त) अमितगति श्रावकाचार परि०६ श्लोक ८७ । धर्मसग्रह श्रावकाचार अ०६ श्लोक २६ । अ०७ श्लोक ४३, ५७ । स्वामीकातिकेयानुप्रेक्षा ३७३-७५ । वसुनन्दि श्रावकाचारे जिणवयणधम्म चेइय परमेष्ठि जिणालयाण णिच्चपि। जं वंदणं तियालं कीरइ सामाइयं तं खु॥२७५।। इन चार घड़ियो के कथन से सामायिक का छह घडी का काल तो वैसे ही मूलाचार के मत से बनता नही है । इस प्रकार मूलाचार मे देववन्दना का कोई निश्चित काल परिमाण नहीं
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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