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________________ - - श्रावक की ११वी प्रतिमा ] [ ५६१ चेन्लय (चेलक) शब्द का प्रयोग इसी अर्थ मे दिया है चेल और चल द्विरूप है इसीसे चेलक और चैलक बने हैं। देशी भापा मे चेला (शिष्य) शब्द भी इससे निष्पन्न हुआ है क्योकि क्षल्लकादि, साधुओ के शिष्य होते हैं । साधु अचेलक कहलाते है क्योकि वे निग्रंथ नग्न होते है अत उनसे नीचे दर्जे के क्ष ल्लक (११ वी प्रतिमाधारी) चेलक कहलाने ही चाहिये क्योकि ये वस्त्रधारी होते है। इसी चैलक (चेला) शब्द के आदि अक्षर 'च' का लोप होकर देशी भाषा मे ऐलक (एलक) शब्द का प्रचार हुआ है। जैसे बच्चे के अर्थ मे संस्कृत 'वाल' शब्द है और उसीके 'क' प्रत्यय लगाकर उसी अर्थ मे 'बालक' शब्द बना है उसी तरह चेल और चेलक समझना चाहिए। अर्श आदि गण ( आकृतिगण ) के अनुसार मत्वर्थीय (मत्वाला) 'अ' प्रत्यय लगने पर चेल (चल) का अर्थ चेल वाला वस्त्रधारी भी हो जाता है जैसे शुक्ल का अर्थ शुक्लवर्ण वाला भी होता है ('गुणे शुक्लादय पुसि गुणि लिंगास्तु तद्वति'-इत्यमर ) । अत चैल और चैलक का 'वस्त्रधारी के अर्थ मे प्रयोग समुचित है इसी चैलक से देशी भाषा मे ऐलक शब्द प्रचलित हुआ है। प० चैनसुखदास जी न्यायतीर्थ को 'लाटी सहिता' का यह प्रकरण हस्तलिखित प्रति मे देखकर लिखने को एक वार हमने निवेदन किया था उत्तर मे उन्होने लिखा था कि-'चलक' की जगह 'लिक' पाठ भी पाया जाता है सस्कृत कोशो मे 'चेलिक' का अर्थ खडवस्त्र दिया हुआ है इससे इस 卐 आहार क्षेत्र के प्राचीन शिलालेखो मे "चेल्लिका रत्नश्री" का उल्लेख है । स्थानीय मुनिसुव्रतनाथ भगवान् की १२२५ स० की १ मूर्ति पर चेल्लिका गणधरश्री का उल्लेख है । परमात्मप्रकाश....
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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