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________________ भगवान की दिव्यध्वनि 1 [ ४८७ अर्थ महा पुरुषो की योग से उत्पन्न शक्ति सपदाये अचित्य होती है । स० नोट- कटारियाजी के लेख विद्वत्ता पूर्ण एव नई खोज को लिए हुये होते हैं । यह लेख भी बहुत ही परिश्रम के साथ लिखा गया है । पाठको को इसमे कुछ नवीनता मालूम होगी । फिर भी अभी यह विषय विशेष स्पष्ट होना चाहिये, जिससे श्रद्धा के सिवाय सर्व साधारण विद्वानो की बुद्धि मे भी यह बात आसके । विद्वान लेखक ने आदि पुराण पर्व २३ का ७३ खां श्लोक देकर जो शका समाधान किया है वह बहुत अस्पष्ट प्रतीत होता है । आशा है कि कटारियाजी इस विषय को और भी अधिक विस्तार से लिखकर स्पष्ट करेंगे । 1
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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