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________________ ___४५० ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ गाथाओका ही सस्कृत मे भावानुवाद हो । इस लेख में नीचे हम इसी की चर्चा करेंगे। मूलाचार की गाथाओ के छाया रूप मे जो सस्कृत पद्य अनगारधर्मामृत की टीका मे उद्धत हुये हैं। उनमे से कुछ पद्य नमूने के तौर पर हम यहाँ पेश करते है पुढवी य बालुगा सक्करा य उवले सिला य लोणे य । अय तब तय सीसय रुप्प सुवण्णे य वइरे य ||६|| हरिदाले हिंगुलये मणेसिला सस्सगजण पवाले य । अब्भपडलब्भवालय बादरकाया मणिविधीया ॥१०॥ मूलाचार ५ वो अधिकार] मृत्तिका बालुका चैव शर्करा चोपल: शिला। लवणायस्तथा ताम्र त्रयु सीसकमेव च ॥ रूप्यं सुवर्ण वज्र च हरिताल च हिंगुलम् । मन. शिला तथा तुत्थ भजन च प्रवालकम् ।। झीरोलकाभ्रक चैव मणिभेदाश्च वादरा । [अनगारधर्मामृत पृष्ठ १६६] इंगाल जाल अच्ची मुम्मुर सुद्धागणी य अगणीय । ते जाणः तेउजीवा जाणित्तापरिहरेदव्वा ।।१४।। मूलाचार ५ वां अधि०] ज्वालागारस्तथाचिश्च मुर्मुर. शुद्ध एव च । ' अनलश्चापि ते तेजो जीवा. रक्ष्यास्तथैव च ।। [अनगारधर्म०, पृ० २०० रादो दु पमज्जित्ता पण्णसमण पेक्विंदम्मि ओगासे । आसक विसुद्धीए अपहत्थग फासण कुज्जा ॥१२६।। मुलाचार ५ वा अघि
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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