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________________ मूलाचार का संस्कृत पद्यानुवाद हमारे यहां मुनियो के आचार विषय का प्राकृत गाथाचद्ध एक मूलाचार नामक प्राचीन ग्रन्थ चला आत्ता है । जो चट्टकेराचार्य का बनाया हुआ है । जिसको आजकल के ऐतिहासिक विद्वान कुन्दकुन्दाचार्यकृत भी वत्तलाते हैं । इस ग्रन्थ पर सस्कृत मे वसनन्टिकृत एक बडो अच्छी टीका है। टीका सहित यह ग्रन्थ माणिकचन्द ग्रन्थमाला मे छप चुका है। दिगम्बर सम्प्रदाय मे यतियो के आचार विषय का प्रतिपादक यह एक ऐसा ग्रंथ है जो प्राचीन और उच्चकोटि का माना जाता है । इस विषय के उपलब्ध ग्रन्थो मे समय की दृष्टि से दूसरा नम्बर सस्कृत' आचारसार का है। इसका समय विक्रम की १३ वी शताब्दी का प्रथम चरण अनुमान किया जाता है। किन्तु १३वी शताब्दी के अन्तिम चरण में होने वाले प० आशाधरजी ने अनगारधर्मामृत की स्वोपज्ञ टीका मे इस आचारसार का एक भी पद्य उद्धृत नही किया है। तीसरा ग्रन्थ १० आशाधर जी का रचा अनगारधर्मामृत है। प० आशाधरजी ने इस ग्रन्थ की स्त्रोपज्ञ टीका मे मूलाचार की गाथाओ का खूब उपयोग किया है । कही २ मूलाचार की उक्त सस्कृत टीका के भी उद्धरण दिये हैं। साथ ही टीका मे सस्कृत के बहुत से ऐसे पद्य भी उद्धत किये हैं जो ऐसे मालूम पडते हैं जैसे वे मूलाचार की प्राकृत
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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