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________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ ४१७ होगा तो विदेह क्षेत्र मे रात्रि होगी और विदेह मे रात्रि होगी तो हमारे यहा दिन होगा, किन्तु इसका अर्थ यह नही है कि - हमारे यहा सूर्यास्त होते ही विदेह मे सूर्योदय होने लग जाय या वहा सूर्योदय होते ही यहा सूर्यास्त होने लग जावे। ऐसा तो समरात्रि दिन के वक्त हो सकता है । विषम रात्रि दिन मे तो ऐसा नही हो सकता है । क्योकि जब १८ मुहूर्त का दिन और १२ मुहूर्त की रात्रि होती है तब भरत क्षेत्र मे सूर्यास्त होने के ३ मुहूर्त पहिले ही पश्चिम विदेह मे सूर्योदय हो जायेगा । और पूर्व विदेह मे सूर्यास्त के ३ मुहूर्त पूर्व ही भरत मे सूर्योदय हो जायेगा । मतलब कि उसवक्त भरत मे जो दिन का अन्तिम ३ मुहूर्तात्मक भाग है वही पश्चिम विदेह मे दिन का ३ मुहूर्तात्मक प्रारम्भिक भाग है। तथा पूर्व विदेह मे जो दिन का अतम ३ मुहूर्तात्मक भाग है वही भरत मे दिन का ३ मुहूर्तात्मक प्रारम्भिक भाग है । और जब १८ मुहूर्त का दिन होता है तब सूर्यास्त के तीन मुहूर्त बाद मे पश्चिम विदेह मे सूर्योदय होता है । और पूर्व विदेह मे सूर्यास्त के ३ मुहूर्त बाद मे भरत मे सूर्योदय होता है । कारण कि दिनमान और रात्रि मान मे जो काल का अन्तर है उसमे दिनमान जितना अधिक होगा उसका आधा समय पूर्वक्षेत्र मे सूर्यास्त का शेष रहते ही उत्तर ( अगले ) क्षेत्र मे सूर्योदय हो जायेगा । तथा जितना अधिक रात्रिमान होगा उसका आधा समय पूर्व क्षेत्र मे सूर्यास्त के बाद उत्तर क्षेत्र मे सूर्योदय होगा । शुक्ल- कृष्णपक्ष बढते जिम पखवाडे मे सूर्यास्त के बाद प्रतिरात्रि उत्तरोत्तर हुए एक एक मुहूर्त तक चन्द्रमा दिखाई देता है, और फिर
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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