SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१६ ] [ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ जाता है । अन्तिम बाह्य वीथी मे सूर्य के विचरते वक्त प्राय जवूद्रोप मे दिनमान १२ मुहूर्त का और रात्रिमान १८ मुहूर्त का होता है। यह मबसे छोटा दिन और सबसे बडी रात-माघ मास मे होती है । तथा १८ मूहूर्त का वडा दिन ओर १२ मुहूर्त की छोटी रात श्रावण मास मे होती है । वैशाख और कार्तिक मे १५-१५ मुहूर्तो का समरात्रि दिन होता है । उस समय सूर्य मध्यम वीथी मे विचरता है । और उस समय सभी वीथियो मे ताप और तम का प्रमाण समान भागो मे रहता है । अभ्यतर की प्रथम वीथी से बाह्य की अन्तिम वीथी मे जाने मे सूर्य को १८३ दिन लगते हैं । इसी को दक्षिणायन कहते हैं । इससे उल्टे बाह्य मे अभ्यंतर मे आने मे उसी सूर्य को १८३ दिन लगते है । उसे उत्तरायण कहते है । दक्षिणायन मे क्रमश: दिन घटता है, और उत्तरायण में क्रमश. दिन वढता है । यह घटावढी ६ मुहूर्त तक होती है । १८३ दिनो मे ६ मुहूर्त की हानि - वृद्धि हो तो एक दिन में कितनी हो ऐसे त्रैराशिक करने से २ मुहूर्त का ६१ वा भाग प्रमाण काल की प्रतिदिन हानि-वृद्धि होगी । अर्थात ३०|| दिन मे १ मुहूर्त दिन घटे - वढेगा । यानी श्रावण मे १८ मुहूर्त का, भाद्रपद मे १७ मुहूत का आगे माघ मास तक प्रति मास एक एक मूहूर्त दिन घटना समझ लेना । इस प्रकार दक्षिणायन मे दिनमान घटता जाता है । इससे आगे उत्तरायण चलता है । उसमे श्रावण मास तक प्रतिमास इसी क्रम से दिनमान बढता जाता है । जैसे फाल्गुन मे १३ मुहूर्त का, चैत्र मे १४ का इत्यादि । प्राय. ३० मुहूर्त का अहोरात्र होता है । ऐसा नियम है इसलिये जब जितना दिनमान होगा तब ही शेष मुहूर्तो की रात्रि होगी । यहाँ हम यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि हमारे यहाँ दिन
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy