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________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ 406 प्रत्येक वीथी मे दो सूर्य आमने सामने चलते हैं। किसी एक वीथी मे चलकर दूसरी वीथी मे आने मे दोनो सूर्यों को एक अहोरात्र (30 मुहूर्त) सम्मिलित काल लगता है / इस तरह एक अयनके 183 दिन होते हैं। दो अयनोके 366 दिनो का एक सूर्यवर्ष कहलाता है / अभ्यतर की प्रथम वीथी से लेकर ६३वी वीथी मे तिष्ठता सूर्य भरतक्षेत्र मे निषधपर्वत पर उदय होता दीखता है / ६४वी ६५वी वीथीयो मे तिष्ठता सूर्य हरिक्षेत्र पर उदय दिखता है और शेष 116 वीथियो मे तिष्ठता सूर्य भारतवासियो को लवणसमुद्र पर उदय होता दीखता है। प्रथम वीथी स्थित सूर्य निपधपर्वत के उत्तरतट से 14621 80 योजन ओलो तरफ (दक्षिण की ओर) आने पर भरतक्षेत्र के अयोध्यावासियो को उदय होता नजर आता है। और निषधपर्वत के दक्षिणतट से करीब 5575 योजन परे जाने पर अस्त होता नजर आता है। ये वोथिय ज्यो ज्यो दक्षिण से उत्तर को गई हैं त्यो त्यो ही वे गोलाई मे उत्तरोत्तर कम होती गई हैं। तथापि उन सब मे प्रत्येक को अपनी गति से पूर्ण करने मे एक सूर्य को 60 मुहूर्त से न अधिक समय लगता है न कम / ऐसा नियम है / अत. कहा जा सकता है कि सूर्य जब दक्षिण से उत्तर को आने लगता है तब उसकी चाल प्रत्येक वीथी मे क्रमश. धीमी होती जाती है और उत्तर से दक्षिण की ओर जाते वक्त उसकी चाल उत्तरोत्तर तेज होती जाती है। वीथियो मे सब से कम गोलाई वाली अभ्यतर की वीथी है / इसकी गोलाई 315086 योजनो की है। इसमे 60 का भाग देने से सूर्य की एक मुहूर्त की गति 525136 योजन प्रमाण निकलती है। इसको सवा से गुणा करने पर उतने प्रमाण सूर्य की एक घण्टे की गति होगी। यह गति सूर्य की अभ्यतर की प्रथम वीथी मे जाननी चाहिए। आगे की वीथियो
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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