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________________ 408 ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग 2 अर्य-पूर्व विदेह मे सर्य नीलकुलाचल पर उदय होता है निपध पर अस्त होता है वहा पूर्व में नीलाचल है, पश्चिम में निपध है / दक्षिण मे समुद्र और उत्तर में मेरुह पश्चिम विदेहमे सूर्य निपध पर उदय होता है नील पर अस्त होता है। वहा पूर्व मे निपध है, पश्चिम मे नील है, दक्षिण मे समुद्र, और उत्तर में मेरु है। उत्तरकुरु मे गधमादन पर सूर्य उदय होता है. माल्यवान् पर अम्न होता है। वहा पर्व मे गधमादन है, पश्चिम मे माल्यवान है, दक्षिण में नील और उत्तर मे मेरु है। देवकुरु मे सूर्य मोमनम पर्वत पर उदय होता है, विद्युत्प्रभ पर अस्त होता है। वहा सोमनस पूर्व मे है, पश्चिम में विद्युत्प्रभ है, दक्षिण मे निराध और उत्तर में मेरु है। इस प्रकार सव स्थानों से मेरु उत्तर की तरफ रहता है / माल्यवान्, सोमनस, विद्य त्प्रभ, और गधमादन ये 4 गजदत पर्वतो के नाम है और इनका स्थान क्रमण मेरु की ईशानादि विदिशाओ मे है। गधमादन और माल्यवान् के बीच उत्तरकुरुक्षेत्र व सोमनस और विद्युत्प्रभ के वीच देवकुरु क्षेत्र है। लोकप्रकाश (श्वेतावर) ग्रन्थ के 18 वें सर्ग मे लिखा है कि - पूर्वापरविदेहेषु निशीथेऽहज्जनिर्यदा। भरतरावतक्षेत्र मध्याह्नः स्यात्तदा यतः॥२४४॥ अर्थ-पूर्वपश्चिम विदेहो मे अर्द्धरात्रि मे जव तीर्थंकर का जन्म होता है तब भरत ऐरावत क्षेत्र मे मध्याह्न होता है। ___सूर्य की गमन करने की कुल 184 वीथिये है। प्रत्येक वीथी मे दो योजन का अन्तराल है। कुल अन्तराल 183 हैं।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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