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________________ [ ४०१ जैन खगोल विज्ञान ] धरातल से ज्योतिष्को की ऊंचाई इस धरातल से ७६० योजन की ऊचाई पर तारे है । उनसे दस योजन ऊपर सूर्य है। सूर्य से ८० योजन ऊपर चन्द्रमा है अर्थात पृथ्वी से ३५ लाख २० हजार मील की ऊंचाई पर चन्द्रमा है । चन्द्रमा से ४ योजन ऊपर नक्षत्र हैं । ग्रहो की सख्या ८८ मे से बुध का स्थान नक्षत्रो से ४ योजन ऊपर है । बुध से आगे शुक्र, वृहस्पति, मंगल और शनि ये क्रमश तीन तीन योजन ऊपर-२ हैं । राहु-केतु का स्थान चन्द्र-सूर्य से नीचे है । शेष ८१ ग्रहो का स्थान बुध और और शनि के अंतराल मे है । इसप्रकार ज्योतिष्क पटल इस धरातल से ७६० याजनो की दूरी से प्रारंभ होकर ६०० योजना पर्यंत स्थित है अर्थात् ऊपर ७६० योजनो बाद ११० योजनो तक ज्योतिष्को का सद्भाव पाया जाता है । और उन सबका तिर्यक् अवस्थान प्राय एक राजू प्रमाण त्रसनाली मे है । किन्तु इसमे इतना विशेष समझना कि जबूद्वीपस्थ मेरु के इर्दगिर्द ११२१ योजनो तक किसी भी ज्योतिष्क का सद्भाव नही है | बल्कि सूर्य चन्द्र तो हमेशा जबूद्वीप में मेरु से कम से कम ४४८२० योजन दूर रहकर ही घूमते है । जिस ज्योतिष्क की धरातल से जितनी ऊचाई बताई है वह धरातल से सदा उतना ही ऊचा रहता है जैसे सूर्य की ऊचाई पृथ्वी से ८०० योजन ऊपर बताई है तो वह उदयास्त के वक्त भी पृथ्वी से उतना ही ऊचा रहता है । दूर रहने की वजह से अपने को नीचा पृथ्वी से लगा हुआ दिखाई देता है । ऊपर सूर्य से चन्द्रमादि की जो ऊचाई बताई है उसने यह नही समझना कि चन्द्रमादि सूर्य की सीध मे परस्पर में इनकी समानगति नही है तो वे इतने ऊचे हैं । जब सदा एक सीध मे
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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