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________________ ४०० ] [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ है तो राहु की गति चन्द्रमा की गति से तेज हो जाने के कारण चन्द्रमा शनै २ पीछे रहता है । और ज्यो ज्यो ही राहु आगे आगे बढता जाता है त्यो त्यो ही चन्द्रमा हर दिन सोलह भागो मे एक एक भाग ढकता हुआ चला जाता है उससे वह हमे प्रतिदिन कम -२ नजर आने लगता है । अमावस को चन्द्रमा के १५ भाग राहु से आच्छादित हो जाने पर भी उसका एक भाग फिर भी अनावृत ही रहता है और सूर्यास्त के वक्त मे ही चन्द्रमा भी उस दिन अपने अस्तस्थान पर पहुँच जाने के कारण उसका वह अनावरण एक भाग भी हमको अमावस की रात्रि मे नजर नही आता है । यह स्थिति तो नित्य राहु की वजह से होती है । किन्तु दूसरा पर्व राहु ओर होता है, वह भी श्याम होता है जिसकी वजह से चन्द्रग्रहण होता है। पूनम के दिन जब नित्य राहु चन्द्र के नीचे नही रहता तो कभी-२ उस दिन पर्वराहु चन्द्रमा के नीचे आ जाता है । वह जितना कुछ आगे पीछे होता है उसी माफक चन्द्रग्रह्ण हमे दिखाई देता है । इसी तरह श्यामवर्ण का एक केतु नामक ज्योतिष्क भी होता है । वह भी कभी २ अमावस के दिन सूर्य के नीचे आजाता है जिससे सूर्यग्रहण होता है । त्रिलोकसार गाथा ३३६ मे चन्द्र को राहुग्रस्त और सूर्य को केतुग्रस्त ही होना बताया है । किन्तु भक्ताभरस्तोत्र ( मानतुं गकृत) के श्लोक न० १७-१८ में क्रमश सूर्यचन्द्र दोनो को राहुग्रस्त ही होना बताया है । श्वे० संग्रहणी सूत्र मे लिखा है कि-राहु के समान कभी कभी केतु से भी ग्रहण होता है । चन्द्रग्रहण सदा पूर्णिमा को और सूर्यग्रहण सदा अमावस को होता है। सूर्य और चन्द्रग्रहण कम से कम छह मास मे एक बार और अधिक से अधिक चन्द्रग्रहण ४२ मासो मे एक बार और सूर्यग्रहण ४८ वर्षो मे एक बार होता है । /
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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