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________________ पंचकल्याणक तिथियाँ और नक्षत्र तीर्थंकरो की पच कल्याणक तिथियाँ लम्बे अरसे से गडबड मे चली आ रही है। इन तिथियो की उपलब्धि के खास स्थान पूजा पाठ के ग्रन्थ है। किन्तु सस्कृत में लिखी चौवीस तीर्थकरो की पूजायें तो प्रचलित है नही, हिन्दी पद्यो मे रची भाषा पूजाओ का ही इस समय अधिक प्रचार है । इन भापापूजाओ मे उल्लिखित कई पच कल्याणक तिथिये आपस मे एक दूसरे से मिलती नही है। यह तो निश्चित है कि भाषा पूजाओ मे दी हुई तिथियो के आधार कोई प्राचीन संस्कृत प्राकृत के ग्रन्थ रहे है । इसलिए हम भी प्रकृतविपय मे भाषापूजाओ को एक तरफ रखकर इस सम्बन्ध के अन्य प्राचीन सस्कृत प्राकृत के ग्रन्थो पर विचार करना उचित समझते हैं। हमारी जानकारी मे इन तिथियो के प्राचीन उल्लेख त्रिलोक प्रज्ञप्ति, हरिवश पुराण और उत्तर पुराण इन तीन ग्रन्थो मे मिलते हैं। किन्तु तीनो ही ग्रन्थो की कई तिथिये भी आपस में मिलती नही हैं । इनमे से त्रिलोक प्रज्ञप्ति और हरिवश पुराण मे सिर्फ चार हीकल्याणको की तिथियाँ दी है, गर्भकल्याणक की तिथियो का कोई उल्लेख ही नही है । न जाने इसका क्या कारण है ? पर हरिवश पुराण मे ऐसा भी है कि-उसके ६० वे पर्व में जहाँ कि तीर्थंकरो के अनेक ज्ञातव्य विषयो का विवरण दिया है वहाँ तो गर्भ कल्याणक की तिथियो का कतई कथन नही है। किन्तु इसी ग्रथ मे जहाँ ऋषभदेव, मुनिसुव्रत, नेमिनाथ और महावीर इन चार तीयं
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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