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________________ २८ कतिपय ग्रंथकारों का समय निर्णय शुभचन्द्राचार्य यहा हम उन शुभचन्द्राचार्य के समय की चर्चा कर रहे हैं जिन्होने ज्ञानार्णव नामक उत्तम शास्त्र बनाया है। उसमे संस्कृत के कोई ४३ पद्य अन्य प्रथो के 'उवतच' रूपसे पाये जाते है। ये सब पद्य स्वयं ग्रन्थकार ने ही उद्धत किये है, टीकाकार ने नही । हमारे समक्ष ज्ञानार्णव की एक ऐसी हस्तलिखित मूल प्रति है जिसको सकलकीति की शिष्यपरम्परा मे होने वाले शुभचन्द्र के शिष्य विशालकीति मुनि ने वि० सं० १६११ मे लिखाई थी। उसमे भी ये पद्य इसी तरह से "उक्त च" लिखे है। उन पद्यो मे पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय और यशस्तिलक के भी पद्य हैं। यशस्तिलक के पद्य ज्ञानार्णव के पृ० ७० और ८७ पर तथा पुरुषार्थसिद्ध्युपाय का "मिथ्यात्वचेदरागा" पद्य पृष्ठ १६५ पर उद्धत है। यह पृष्ठसंख्या ज्ञानार्णव के तीसरे सस्करण की समझनी चाहिये । इनमे से यशस्तिलक का रचनाकाल पूर्णतया निश्चित है । यशस्तिलफ की प्रशस्ति मे उसके कर्ता सोमदेव ने उसको वि० सं० १०१६ मे बनाकर समाप्त किया लिखा है। इससे प्रगट होता है कि ज्ञानार्णव के रचनाकाल की पूर्वावधि वि० सं० १०१६ की है। यानी वह वि० स०१०१६ से पहिले कर बना हुआ नहीं है। बाद मे बना है। कितने वाद मे बना है? इसके लिये रत्नकरडश्रावकाचार की प्रभाचन्द्र कृत खस्कृत
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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