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________________ २८० ] [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ अर्थ - वीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि और वासुपूज्य इन पच तीर्थकरोको छोड़कर बाकी तीर्थंकर राजा हो दीक्षा ली । और उक्त पाचो ने राज्याभिषेकको नही चाहते हुए कुमारावस्था मे ही दीक्षा ली। पाठकोको यह स्मरण रहे कि इसी आवश्यक सूत्रमें महावीर जिनका विवाहही नही उनके सतान तकका उल्लेख है । इसप्रकार लेखकने पउमचरियको दिगम्बर ग्रन्थ सावित करनेके लिये जो-जो दलीले दी वे सब नि सार और अकिचित्कर है । पद्मपुराणकी प्रामाणिकता मे संदेह रविषेणके पद्मचरितमे कितना ही कथन ऐसा भी है जो दिगम्बर मान्यता के विरुद्ध पडता है । और वह पउमचरिय का अनुसरण करते हुये किसी तरह उसमे प्रविष्ट होगया जान होगया पडता है । जैसे मेरुको कपित करनेसे महावीर नाम होना X ( खण्ड १ ष्ठ १५) विद्याधर वशकी उत्पत्ति नमिविनमिसे बताना + (ख० १ पृ० ६८ ) जबूद्वीप के अधिपति यक्षकी देवियोका, रावणपर मोहित हो उससे सभोगकी इच्छा करना। (खड १ पृष्ठ १६४ ) जिन प्रतिमाके मुकुट धारण, (खड २ पृष्ठ ३०) दो केवलीका X अशग कविकृत महावीर चरित और श्री धर्मचन्द्रकृत गौतमचरितमे भी ऐमा उल्लेख है वह पद्मचरित परसे लिया गया ज्ञात होता है। तथा इसकी भी गणना दिगम्बर श्वेतावर के ८४ अन्तरोमे है । + क्या पहिले विद्याधर नही थे ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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