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________________ वयी पउमचरिय दिगम्बरे ग्रन्थ है ] [ २७६ जाता है वह एक विशेष बात है जिसे उन्होने भी आश्चर्य नाम से लिखा है । और वह पउमचरियमे संक्षेपताके कारण नही लिखा गया है ऐसा जान पडता है । लेखक ने एकबात अपनी जाण मे as मार्केकी लिखी है । वह पउमचरियके निम्न पद्यको जिसमे पाच तीर्थंकरोको कुमारावस्थामे दीक्षा लेनेका कथन है महावीर की अविवाह सिद्धिमे पेश किया है ******* मल्लो भरिट्ठनेमी यासो वीरो य वासुपुज्जो ॥५७॥ एए कुमारसीहा गेहाओ णिगया जिणर्वारिदा । सेसा वि हू रायाणो पुहई भोत्तण क्खिता ॥५८॥ पर्व २० अर्थ - मल्लि, अरिष्टनेमि, पार्श्व, वीर और वासुपूज्य ये पाच तीर्थंकर कुमारपणे मे घर से निकले - यानी दीक्षा ली, ओर शेप तीर्थकर राजा हो पृथ्वीको भोग दीक्षा ली । Bada Ar Pl यहा भी लेखकने कुमार शब्दमे गलती खाई है । यहा कुमारसे मतलब है राज्याभिषेक के पूर्व की अवस्था, न कि बालब्रह्मचारित्व | नही तो ग्रन्थकर्त्ता यो नही लिखते कि - 'शेष तीर्थकर राज भोगकर दीक्षा ली' । इसी तरहका वर्णन श्वेताम्बरोके 'आवश्यक सूत्र' मे भी पाया जाता है । यथा वीर अरिट्ठनेम पासं मल्ल च वासुपुज्ज च । एए मोत्तण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥ २४३॥ ★मय इच्छियाभिसेया कुमारवासंमि पवइया । आवश्यक सूत्र • ★ रायकुलेसु विजाया वियुद्धवसेसु खनिसकुलेसु । य इत्थि आभिसेभा कुमारं वासमि पव्वय ॥ आवश्यक निर्युक्ति ?
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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