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________________ प० टोडरमलजी का जन्मकाल "" ] [ २५६ पूर्व ही उसकी पूजा बनाना तो असगत नही कहा जा सकता। क्योकि ऐसा तो उनकी गोम्मटसार के प्रति विशेष भक्ति होने से भी हो सकता है। दूसरी बात यह है कि महावीर जी अतिशयक्षेत्र से प्रकाशित "राजस्थान के जैन शास्त्रभडारो की ग्रन्थसूची" के ३रे भाग के पृष्ठ १६१ पर प० टोडरमलजी कृत आत्मानुशासन की टीका का रचनाकाल वि० स० १७६६ भादवासुदी २ लिखा है । इससे भी उनका जन्मकाल स० १७६७ मानना गलत सिद्ध होता है। इस वक्त तक यदि हम पडित जी की उम्र १७-१८ वर्ष की भी मान ले तो हमने जो ऊपर उनका जन्म स० १७७६ की कल्पना की है वह ठीक मालम देता है । इस ऊहापोह से यह सिद्ध होता है कि जब दुर्घटना से उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र ४५ वर्ष के करीव थी 150 5 १७६७ की जगह १७६७ भी सभव है । ६ को गलती से ६ पढा गया है प० देवीदास जी गोधा ने सिद्धांतसार संग्रह की अपनी भाषाटीका के अन्न मे लिखा है कि " प० टोडरमलजी महा बुद्धिमान के पास शास्त्र-श्रवण का अवसर मिला। प० टोडरमलजी के बडे पुत्र हरिश्चन्दजी और छोटे पुत्र गुमानीरामजी भी उस वक्त थे दोनो महा बुद्धिमान कुशल वक्ता थे जिनके पास मी शास्त्रो के अनेक रहस्य ज्ञातकर ज्ञान प्राप्त किया" (देखो वीरवाणी वर्ष २३अ क ५) इस वक्त को अगर हम श्री पं० टोडरमलजी की मृत्यु से कम से कम दो वर्ष पूर्व भी अर्थात् १८२२ भी मान लें तो उस वक्त उनके दो बडे बडे विद्वान पुत्र थे जिनकी आयु ३०-३५ वर्ष भी मान लें तो उस वक्त प० टोडरमलजी की आयु ५५ वर्ष के करीव अवश्य होनी चाहिये अत कम से कम १७६७ मे उनका जन्म सवत् मानना ठीक होगा।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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