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________________ २५६ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ दोरि देहुरा जिन लिय लुटि , प्रतिमा सब डारी तिन फूटि ॥१३०८॥ काह की मानी नहिं कानि , कही हुकम हमको है जानि । ऐसी म्लेच्छनहु नहि करी, बहुरि दुहाई नृप की फिरी ॥१३०६।। इस प्रकार प ० टोडरमलजी साहब का निधन समय तो एक तरह से निश्चित ही है। परन्तु उनका जन्म समय निश्चित नही है। जिससे हम यह नहीं कह सकते हैं कि मृत्यु के वक्त उनकी कितनी उम्र थो? प० देवीदासजी गोधा ने अपने चर्चा ग्रंथ मे उनका जन्म सवत् १७६७ दिया है। उसमे भूल मालूम पड़ती है। क्योकि टोडरमलजी ने लब्धिसार की टीका वि० स० १८१८ मे पूर्ण की है। ऐसा उसकी प्रशस्ति में लिखा है। और व० रायमल जी की चिट्ठी से यह जाना जाता है कि-टोडरमलजी ने गोम्मटसार लब्धिमार, क्षपणासार और त्रिलोकसार इन चार ग्रन्थो की टीका तीन वर्ष में बनाई है। त्रिलोकसार को छोड शेष ३ ग्रन्थो के सशोधन, प्रतिलिपि उतरवाने आदि कार्यों में अगर हम २ वर्ष का काल और मान ले तो इसका अर्थ होता है उन्होंने वि० स० १८१३ मे टीकामओ का रचना शुरू किया था। टीकाओ के रचने के पूर्व उन्होने इन ग्रन्थो का एक दो वर्ष तक मनन चिन्तन भी किया ही होगा। ऐसी हालत मे गोम्मटसारादि ग्रन्थो के पठन का समय उनका वि० सं० १८११ तक पहुँच जाता है। अगर हम उनका जन्म समय वि० स० १७६७ को ही सही मान लेते है तो इसका मतलब यह होता है कि वे १४ वर्ष की उम्र मे ही सिद्धात शास्त्रो का मनन करने जैसे हो
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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