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________________ २५२ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ ११वीं उदिष्ट त्याग प्रतिमा : इस पद को धारण करने के लिये घर छोडना पडता है और गुरु के पास जाकर ही यह पद ग्रहण करना पड़ता है। इस प्रतिमा का धारी अनुद्दिष्ट भिक्षा भोजन करता है, तपस्या करता है, गुरु के सघ मे रहता है और खड वस्य रखता है । खंडवस्त्र का अर्थ है या तो लगोट मात्र रखता है या ऐसी एक छोटी चादर रखता है जिसे पैर पसार कर मोढी जाये तो पूरा शरीर ढका नही जा सके। इस प्रतिमा के धारी को उत्कृष्ट श्रावक कहते हैं। क्ष ल्लक भी इसी का नाम है। यहाँ तक श्रावक धर्म की सीमा है। इससे आगे निर्वस्त्र रूप मे मुनि का धर्म शुरू होता है। इन प्रतिमाओ के विषय मे विशेष यह , समझना चाहिये कि-जो जिस प्रतिमा का धारी होता है उसे उससे नीचे की सब प्रतिमाओ का आचार पालना जरूरी होता है। आयु के अन्त में सभी तरह के श्रावको को सल्लेखना से मरण करना आवश्यक होता है। इस प्रकार यहाँ दिगम्बर जैन शास्त्रों के अनुसार सक्षेप मे श्रावक धर्म का स्वरूप निरूपित किया गया है।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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