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________________ १७० ] [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग १ यह अन्तर इस तरह दूर किया जा सकता है कि - नेमिचन्द्र ने जो वंशावली दी है उसमे वे अपना वराक्रम १० पीढी पूर्व मे होने वाले लोकपाल द्विज से शुरू करते है । और ब्रह्मसूरि अपनी वंशावली अपने से ४ पीढी पूर्व में होने वाले हम्तिमल्ल से शुरू करते हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि नेमिचन्द्र ने हस्तिमल्ल से करीब एक मौ वर्ष पूर्व से अपनी खशावली शुरू की है । इस प्रकार यह अन्तर रफा होकर नेमिचन्द्र का समय विक्रम को १५ वी सदी का पूर्वार्द्ध हो ठीक रहता है और यही समय ब्रह्मसूरिका भी है । नेमिचन्द्र ने प्रशस्ति मे लोकपाल हस्तिमल्ल के हुआ तिखा है । इसका अर्थ यह नही समझना कि लोकपाल कुल मे हस्तिमन के बाद हुआ है । चुकि हस्तिनल्न एक विख्यात विद्वान हुये थे इसलिए नेमिचन्द्र ने हस्तिमन के पूर्वज लोकपाल आदि को हस्तिम के अन्वय मे होना लिख दिया है । क्योकि जिस वंश में कोई प्रसिद्ध पुरुष हो जाता है तो उसकी आगे पीछे पीढिये उसी के नाम के वश से बोली जाया करती है। यहा इतना जरूर समझ लेना कि नेमिचन्द्र और ब्रह्मसूरि दोनो समान वश में होते हुये भी जिस नान परंपरा मे नेमिचन्द्र हुये है उस सनान परंपरा मे न हस्सिम्हन हुगे और न ब्रह्मसूरि हो । अर्थात् नेमिचन्द्र और ब्रह्मसूरि दोनो के परदादो के परदादे आदि जुदे जुदे थे । "बाबू छोटेलालजी स्मृति ग्रंथ" मे डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री आरा वालो का "भट्टारकपुगीन जैनसस्कृत साहित्य की प्रवृत्तियाँ" नामक लेख प्रकाशित हुआ है । उसमे लेखक ने न मालूम इन नेमिचन्द्रको समय ( पृ० ११८ ) विक्रम की १३ वी
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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