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________________ आयिकाओ का केशलोच ] [ १५६ तिणिव पंचव सत्तव अज्जाओ अण्णमण रक्खाओ। थेरोहिं सहंतरिदा मिक्खाय समोदरंति सवा ॥१६॥ अर्थ-तीन या पांच या सात आर्यिकायें मिलकर वृद्ध स्त्रियों के साथ उनकी आड मे होकर सदा भिक्षा के लिए गमन करती हैं। और आपस मे एक दूसरे की रक्षा का भाव रखती हैं। - इस कथन से सहज ही यह जाना जा सकता है किआयिकायें वसतिका से किसी कार्यवश बाहर निकलती है तो आम जनता की निगाह से बचने के लिए आचार शास्त्रो मे उनके लिए कैसे २ नियन्त्रण रक्खे हैं। जहाँ जैन शास्त्रो मे आयिकाओ को पुरुषवर्ग से बचे रहने के लिए उनके दृष्टिपथ मे न आने देने के लिए ऐसे-ऐसे आदेश दिए हैं। यहाँ तक कि कोई भी महिला किसी मुनि के पास से दीक्षा भी नहीं ले सकती है। ऐमी सूरत मे एक जैन साध्वी मर्दो की भरी आमसभा मे जहाँ । जैन अजैन सैकडो, हजारो आदमी विद्यमान हो वहाँ ऊँचे मर्च। मे बैठ कर अपना शिर उघाड कर कैश लौंचन करे यह कहां तक उचित कहा जा सकता है । इस पर दि० जैन समाज के ज्ञानवान् भाइयो को गम्भीरता पूर्वक सोच विचार करके निणय । देना चाहिये । ऐसी उनसे मेरी विनती है। हॉ यदि उन आर्यिकाओ को एकान्त मे लौच करना रुचिकर न हो तो भले ही वे महिलाओ की सभा मे लोच करले परन्तु पुरुषो के समूह मे तो उनका लौच करना योग्य नहीं है। वि० स० २०२६ रक्षा बधन पर एक आचार्य महाराज ने दिल्ली में एक ब्रह्मचारिणी को क्षुल्लिका की दीक्षा दी
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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