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________________ रक शिरोमणि थे, तथा विशालकीति के मधर्मा थे। [वही; शिसं. iv. ४.३] ४. दक्षिणी मूलनन्दिसंघ-बलात्कारगण की पट्टावली : वसन्तकीति-देवेन्द्रविशालकीति-शुभकीति-धर्मभूषणप्र०-अमरकीति-धर्मभूषण दि. (स्वर्ग. १३७३ ई०), में उल्लिखित अमरकीति । [बही; शिसं.i. १९१; iv ४४९; मेज. ३०.] ५. योगचिन्तामणि नामक योगविषयक संस्कृत ग्रन्थ के रचयिताऐसा लगता है कि न. ३,४ एवं ५ अभिन्न हैं, और उनका समय ल. १३५० ई० है। [शोधांक-५० पृ. ३७०] ६. मूलनन्दिसंघ के सूरतपट्ट के भ. पद्मनन्दि के शिष्य देवेन्द्रकीति थे और प्रशिष्य विद्यानन्दि थे, जिनके शिष्य मल्लिभूषण थे और प्रशिध्य यह भ. अमरकोति सरि थे। इन्होंने श्री जिनसहस्त्रनाम की चन्द्रिका नाम्नी टीका रची थी, जिसमे स्वयं को 'भारतीनन्दन' लिखा है, श्रुतसागर सूरि का स्मरण किया है, टीका को भ. विश्वसेन द्वारा अनुमोदित लिखा है, और संघाधि. पति सुधाचन्द्र श्रावक के नामांकित किया है। इनका ममय ल. १५०० ई० है। [वही; प्रवी. i. २२,९६] ७. मूलनन्दिसंघ के मलखेड पट्ट के भ. धर्मचन्द्र के शिष्य, विशालकोति के सधर्मा ओर भवनकीति एव भ. सकलकोति (१६०५ ई.) के गुरु । भुवनकीर्ति के शिष्य विद्याषेण (१५९७ ई.) थे। उपरोक्त विशालकीति अन्तरीक्ष-पार्श्वनाथ (शिरपुर अकोला) एव शोलापुर पट्टों के संस्थापक थे। इन भ अमरकीर्ति का समय ल १५५०-७५ ई० है। [शोषांक-५०] ८. क्राणूरगण के आचार्य अमरकीति जिनके गृहस्थणिष्य बोप्पप्य ने चामराजनगर की पाश्वनाथ-बसति मे समाधिमरण किया था। [मेज ३२] ९. सारस्वतगच्छ-बलात्कारगण के अमरकीति, जिनके शिष्य माधनन्दि के ग्रहस्थ शिष्य श्रेष्ठि मोगराज ने, विजयनगर नरेश हरिहरराय प्र० के शासनकाल मे. १३५५ ई० में, रायदुर्ग मे ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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