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________________ अभिमन्यु — १: महाभारत का किशोर वीर, अर्जुन पांडव एवं सुभद्रा का पुत्र । २. ग्वालियर का कच्छपघातवंशी नरेश, अर्जुन का पुत्र, विजय पाल का पिता, और बकुण्ड जैन शि: ले. (१०८८ ६०) के महाराज विक्रमसिंह का पितामह । संभवतया धाराषीश भोज परमार का समकालीन था । ग्वालियर के इस कच्छपघात राजवंश में बराबर जैनधर्म को प्रवृत्ति रही आई । [प्रमुख. २१२-२१३; जंशिसं. ii. २२०; गुच. ७५, ७७-८०] ३. हरिवंश पुराण के कर्त्ता दिग. जैन पं. रामचन्द्र का पुत्र, जिसके अनुरोध पर उक्त ग्रन्थ की रचना की गई थी, यह महादानी था। [ प्रवी.. ३० ] अभिमानचिन्ह, अभिमानमेद, अभिमानाङ्क आदि-- अपभ्रन्श जैन महाकवि पुष्पदन्त के उपनाम, दे. पुष्पदन्त । अभिमानाडू - प्राचीन अपभ्रन्श कवि, जिनका उल्लेख उद्योतनसूरि ने अपनी कुवलयमाला (७७८ ई०) में तथा हेमचन्द्राचार्य ने भी किया है। [जैसाइ. ५७३] अभिरामदेवराय - महान जैन कन्नडकवि आदिपंप या पंप (स्वर्ग. ९४१ ई०) के पिता जैनधर्माबलम्बी तेलेगु ब्राह्मणपडित । [ मेजे. २६५] अभीषिकुमार - सिन्धु-सौवीर के वीतभयपत्तन नरेश उदायन तथा रानी प्रभावती के एकलौते पुत्र, ती. महावीर के भक्त, राज्य का उत्तराधिकार अस्वीकार करके मुनिदीक्षा लेली थी, ल. ५५० इ० पू. 1 [प्रमुख. १३] अवेव, पं० दिन., भ. चन्द्रभूषण के शिष्य, ल. १४५० ई०, श्रवणद्वादशी - कथा (संस्कृत, श्लो. ८०) के लेखक - रचना १५०६ ई० के गुटके में प्राप्त । [ अनेकान्त ३७/३, पृ १५ ] - संभवतया शोडशकारण विधान के कर्ता अभ्रपंडित भी यही हैं। अमनसिंह, सुशी- सोनीपत निवासी गोयलगोत्री अग्रवाल, दिग. जैन, विशनसिंह के पुत्र, बहुधा दिल्ली रहते थे, छापाप्रचार के प्रारंभिक युग में अच्छा कार्य किया, दसियों छोटी-बड़ी पुस्तकें स्वद्रव्य से प्रकाशित कीं, यथा आदिनाथ स्तुति (१८९३ ई०), पार्श्वनाथ स्तुति (१८९६ ई०), भूषरकृत पार्श्वपुराण का संपादन एवं गद्य रूपा ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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