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________________ YY २. देशीगण - कुन्दकुन्दान्वय के अभयनन्दि भटार जिनका उल्लेख ४६६ ई० के मर्करा ताम्रशासन में गुणचन्द्र के पश्चात और शीलभद्र के पूर्व हुआ है । किन्तु यह अभिलेख जाली सिद्ध हो चुका है, अर्थात मूल अभिलेख का नौवीं दसवी शती में कराया गया नवीन संस्करण । [जैशिसं. ii. ९५; एक. i. कुगं. १] ३. नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (ल. ९५०-९९० ई०) के गोम्मटसार- कर्मकाण्ड, त्रिलोकसार और लब्धिसार में उल्लिखित उनके स्वयं के तथा वीरनन्दि और इन्द्रनन्दि के गुरु आचार्य अभयनन्दि । [शोषांक ४६ पृ. २२० ] ४. देशीगण के आचार्य गुणनन्दि के शिष्य, विबुधगुणनन्दि के कनिष्ट धर्मा और चन्द्रप्रभचरित्र के कर्त्ता वीरनन्दि के गुरु । [ वही ] ५. ज्वालमालिनी कल्प ( ९३९ ई० ) के कर्ता इन्द्रनन्दि के मिद्धान्तशास्त्रगुरु । [ वही; पूजेवासू. ७१-७२] ६. देशीगण - कोंडकुन्दान्वय के देवेन्द्र सिद्धान्त भटार के प्रशिष्य, चान्द्रायण भटार के शिष्य गुणचन्द्र भटार के शिष्य अभयनन्दि पंडितदेव जिनकी शिष्या आर्यिका णाणब्बेकन्ति की गृहस्थ शिष्या राजरानी पाम्बब्बे ने ९७१ ई० में समाधिमरण किया था । शोधांक- ४६; [जैशिसं. ji. १५० ] ७. वर्धमान मुनि के दशभक्त्यादि महाशास्त्र में प्रदत्त नन्दिसंघसरस्वती गच्छ बलात्कारगण की पट्टावली के २१वें गुरु, जो गुणचन्द्र के पश्चात और सकलचन्द्र के पूर्व हुए । [ शोधांक-४६; प्रसं. १३३] ८. सन् १९४६ ई० के शि. ले. में उल्लिखित सकलागमात्थं निपुण सकलचन्द्र के गुरु अमयनन्दि मुनि । [ जैशिस . ५०; शोधांक- ४६ ] ९. काल्य योगि के शिष्य और सकलचन्द्र के गुरु तथा मेषचन्द्र विच (स्वर्ग. १११५ ई०) के प्रगुरु- मेघचन्द्र के शिष्य प्रभाचन्द्र का स्वर्गवास १९४६ ई० मे हुआ था। ५०] - इन अभिलेखों में इन अभयनन्दि की गई है । [जैशिस । ४७, प्रभूत प्रशंसा की ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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