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________________ [मे. १५७; जेशिसं.iv. ५५९] ८. देशीगण-पुस्तकगच्छ के चारुकीति के प्रशिष्य, माघनन्दि के शिष्य, तथा बालचन्द्र के गुरु और उन रामचन्द्र मलपारि के प्रगुरु, जिनके शिष्य शुभचन्द्र का स्वर्गवास १३१३ ई० में हुमा था -अत: इन दिगम्बरबार्य अभयशशि या अभयचन्द्र का समय ल. १२५० ई. है। [शोधांक-४८; जैशिसं. . ४१] ९. वैयाकरणी दिगम्बराचार्य अभयचन्द्र, जिन्होंने ल. १२८.ई. में शाकटायन कृत शब्दानुशासन को 'प्रक्रियासंग्रह' नाम्नी टीका लिखी थी। [शोषाक-४८; जैसाइ. १५१, १५५] १०. अभयचन्द्र सिद्धान्ति विद्य - चक्रवती, जिन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धान्त-चक्रवती के गोम्मटसार-जीवकांड की (गाथा ३८३ पर्यत की) 'मन्दप्रबोधिका' नामक संस्कृत टीका लिखी थी. जिसका उल्लेख केशवर्णी ने उसी ग्रन्थ की अपनी कन्नडी टीका (१३५९ ई.) में किया है। त्रिलोकसार-व्याख्यान तथा कर्मप्रकृति इन अभयचन्द्र की अन्य कृतियां रही बताई जाती हैं। यह देशीगणपुस्तकगच्छ की इंगुलेश्वर शाखा के दिगम्बराचार्य थे, और बालचन्द्र पंडितदेव (स्वर्ग. १२७५ ई.) के गुरु या ज्येष्ठ सधर्मा थे, अत: इनका समय ल. १२००-५० ई. है। [शोषांक-४८; शिसं. iii. ५१४ व ५२४] ११. उसी इंगुलेश्वर शाखा के अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, जो भाषमन्दि भट्टारक के शिष्य थे, नेमिचन्द्र भट्टारक के सघर्मा थे, और बालचन्द्र पण्डितदेव (स्वर्ग. १२७५ ई.) के गुरु थे -यह न०१० से अभिन्न प्रतीत होते हैं, संभवतया न०८ और ९ से भी। [शोधाक-४८; शिसं. iii. ५१४, ५२४; एक. v. १३१, १३२] १२. महावाद-वादीश्वर, रायवादीपितामह, वादिसिंह अभयचन्द्र सिद्धान्तदेव, जो अकलङ्कदेवकृत 'लघीयस्त्रय' के टीकाकार तथा स्यावादभूषण नामक कृति के रचयिता है । [लोषांक-४८; न्यायकु. च. i की प्रस्तावना] १३. अभय चन्द्र महासदान्तिक, जो उसी संव के बालचन्द्रवती के ३८ ऐतिहासिक मक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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