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________________ ११. इसी गण- गच्छ के भ. कमलकीर्ति ( १४४९-८८ ई०) के शिव्य । [ शोधांक ३] १२. नंदिसंघ-सरस्वती गच्छ बलात्कारगण के सागवाड़ा पट्ट के मंडलाचार्य रत्नकीर्ति के शिष्य, जिन्होंने १४४५ ई० के लगभग विशाल चतुविध संघ सहित दक्षिण देश को विहार किया था और वहाँ रत्नकीर्ति पट्ट स्थापित किया था, जिसके मुनि नग्न एवं बनवासी होते रहे । [शोधांक-३; जैसिभा. xiii. २.११२११५ ] १३. इसी संघ-गण- गच्छ के मालवा पट्ट के अभिनव रत्नकीर्ति के शिष्य, कुमुदचन्द्र ( १५५० ई०) के सधर्मा, और ब्रह्म रायमल्ल (१५५९-७६ ई०) तथा भ. प्रतापकीति ( १६१९६०) के गुरु- समय ल. १५५० ई० । [शोषांक - ३ ] १४. इसी गण-गच्छ के कृष्णगढ़ पट्ट के भ. महेन्द्र कीर्ति के पट्टघर और भ. भुवनभूषण के गुरु अनन्तकीति- १७५५ ई० । [ शोषांक - ३] १५. इसी गण- गच्छ के नागोर पट्ट के भ. सहस्त्रकीति द्वि. के शिष्य और हर्षकीर्ति के गुरु भ. अनन्तकीर्ति- ल. १८०० ई० । [ शोषांक - ३] १६. मूलसंघ - काण्रगण के अनन्तकीर्तिदेव जिनके गृहस्थ शिष्य बोप्पय ने, १४वीं शती ई० में, समाधिमरण किया था। [जैशिसं. iv ४१८] १७. अजमेर के नंदिसंघी भ. महेन्द्रकीर्ति के पट्टधर मोर भुवन भूषण के गुरु भ. अनन्तकीर्ति (१७१६-४० ई० ) । इन्हींके उपदेश से १७३७ ई० में श्रावक रामसिंह ने मारोठ में साहों के जिनालय की प्रतिष्ठा कराई थी। [ प्रभावक. २३०; कंच. ०६ ] अनन्तवास-- मे संघीदोगलदास आदि कई सेठों के सहयोग से, भ. क्षेमकीति के उपदेश से, १६३९ ई० में शान्ति जिन प्रतिष्ठोत्सव किया था । [कैच. ७७; अनेकान्त, xiii. १२७ ] अनन्तनाथ - चौदहवें तीर्थंकर, जन्मस्थान अयोध्या, पिता सिंहसेन, माता जय श्यामा, इक्ष्वाकुवंशी नरेश । २६ • ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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