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________________ १. नेपटा निवासी गोयनमोषी बनवाम संपपति उदयकरण, बामेर के म.नरेन्द्रकोतिभक्त, १६५२६. में ससंघ गिरनार की याचा की और वहां एक प्रतिष्ठा कराई। [प्रमुख. २१५ कंच. ८२] उदयकीति- १. प्राकृत निवषसप्तमीकमा के रचयिता बालपन के गुरु । दिल्ली पंचायती मंदिर की प्रति] २. श्वे., १६२४ ई. में विमलकीतिकृत 'पदव्यवस्था' नामक व्याकरण की टीका निजी की। ३. दिग., सहस्त्रकीति के शिष्य, न. ११५.ई. में संस्कृत में पुष्पाम्बनिकाय एवं निर्वाषपूना रची थी। उदयचन्ह-- १. दिल्ली निवासी, गगंगोत्री अग्रवाल विग. जैन धर्मात्मा सेठ दिउढासाह (१४४३ ई.) का पौत्र और वीरवास का पुत्र स्वयचन्द । [प्रमुख. २४३] २. साह उपचन्द मोहिलगोत्री पोरवार ने म. धर्मकीति के उपदेश से १६१४ ई० में उदयगिरि पर नंदीश्वर चैत्यालय की प्रतिष्ठा कराई थी। [शिसं.iv-नागपुर का लेख न. ६२] उदयचन्वमंगरी- उत्तमचन्द भंडारी के भाई, १८०७-१८४३ ई. के बीच लगभग ५० छोटी बड़ी हिंदी रचनाओं के कत्ता [कुशल. ४०] १. वर्षमानमुनि (१५४२ ई.) द्वारा नन्दिसंघ-बलात्कारगण की परम्परा मे उल्लिखित वासुपूज्य मुनि के शिष्य, कुमुदचन्द्र (कुमुदेन्दु) के गुरु और माघनंदि के प्रगुरु-माषनंदि के शिष्य कुमुदचंद्र पंडित का समय १२०५ ई० है। [प्रस. १३३; शिसं. iv. ३४२, ३७६] २. देशीगण-पुस्तकमच्छ के माधनंधि सिद्धांत के शिष्य और गुणचंद्र, मेषचंद्र तथा चंद्रकीति के सधर्मा, नैयायिक, मीमांसक, बौदादि वादियों पर विजय पानेवाले परितदेव उदयचंद्रगुणचंद्र के शिष्य नयकीति का स्वर्गवास ११७७ ई. में हवा था। [शिस. i. ४२] ३. श्रवणबेलगोल के १३९८६० के शि. ले. मे देवचंद्र और रविचन्द्र के मध्य उल्लिखित उदयचंद्र। [शिसं.i. १.५] ४. महामण्डलाचार्य उदयचंद्रदेव, जिनके शिष्य मुनिचंद्रदेव ने ऐतिहासिक व्यक्तिकोश
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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