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________________ श्रावक ने भविष्यदत्तचरित्र की प्रति दान की यो । [ प्रज. १४०, १६४, १७२; जैसा. ३३६ ] इमडि मट्टोपाध्याय- विद्यानुशासन (या विद्यानुवाद) नामक ग्रन्थ में मृत एक पूर्ववर्ती जैन ग्रन्थकार । [ जैसा. ४१७ ] इम्मfड कृष्णराज मोडेवर- मैसूर नरेश ने ९ अगस्त १५३० ई० को श्रवणबेलगोल के भट्टारक चारुकीति स्वामि को सनद दी थी। [जंशिसं. i. १४१, ४३४ ] इम्मfड वण्डनाथक- होय्सल नरसिंह प्र. के सेनापति माचियण ( ११५३ ई० ) का पिता । [ जैशिसं. iv. २४६ ] इम्मfe वण्डनायक मिट्टियण- दे. बिट्टियण्ण, बिट्टिदेव, विष्णुदण्डाधिप । [जंशिस. iii. ३०५; प्रमुख. १४८-१४९ ] इम्मडि देवराज ओडेयर ने १५१४ ई० में अनन्ततीर्थंकर बसति एवं चौबीस तीर्थंकर बसति को भूदान किया था और १५२२ ई० में तौलवदेशस्थ क्षेमपुर (गेरसोप्पे ) में एक ताम्रशासन द्वारा लक्ष्मेश्वर के शंख - जिनालय के लिए देशीगण के चन्द्रप्रभदेव मुनि को भूमिदान दिया था। [जैशिसं. iv ४६२, ४६३; v २३१] प्रसिद्ध जैन सेनापति बचप के पुत्र, मन्त्रीश्वर इम्मडि बुक्क ने १३९५ ई० में कुन्थुनाथ चैत्यालय बनवाया, बीर, दानी, १३९७ ई० के शि. ले. में भी उल्लेख है । [जेशिसं. iv. ४०४; V.१-२] इम्मडि भैररस - मेरवेन्द्र, मैररसबोडेव, इम्मडिमैटरल बोडेर या भैरव द्वि. जो तुलुदेशस्थ कारकल का जिनधर्मी नरेश था, भैरव प्र० (भैरवराज) का भानजा और उत्तराधिकारी था, और जिसने १५८६ ई० में कारकल में गोम्मटदेव की मूर्ति के सामने वाली पहाडी चिक्कवेट्ट पर एक भव्य एवं विशाल जिनालय बनवाया था जो रत्नत्रय, सर्वतोभद्र या चतुर्मुख बसदि मोर त्रिभुवनतिलक चैत्यालय कहलाया । उसने बोर भी अनेक धर्मकार्य किये। ये कार्य उसने स्वगुरु, कारकल के भट्टारक ललितकीर्ति मुनोन्द्र की प्रेरणा एवं उपदेश से किये थे । यह राजा धर्मात्मा होने के साथ-साथ बड़ा शूरवीर, प्रतापी, सुशासक, दानशील और विद्या रसिक भी था । [ प्रमुख. ३२०-३२१; जैसाइ २३५ ] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश इम्मडि बुक्क विजय नगर के १२२
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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