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________________ बाहर, अम्बर और सोल्ला का भाई, स्वयं भी राज्य का बीर सेनानी एवं मन्त्री | [प्रमुख. २३३] ३. बिजोलिया के सुप्रसिद्ध पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माता शिल्पी, सूत्रधार हरसिंह का पौत्र और पाल्हण मिस्त्री का पुत्र । [जैशिसं. iv. २६५ ] आहवमल्ल- १. कल्याणी के उत्तरवर्ती पश्चिमी चालुक्य वंश का संस्थापक तैलप द्वि. आहवमल्ल (९७४-९९७ ई०), जैनधर्म का प्रश्रयदाता या उसके कई मन्त्री, सेनापति तथा अनेक सामन्त भी जैन थे। सुप्रसिद्ध सती अत्तियब्बे उसी के सेनापति नागदेव की पत्नी थी । [ प्रमुख. ११४-११८ मा. ३१०-३१५ ; देसाई. १४०,१४९; मेजं. १०६; जंशिसं. iv. ११७ ] २. इसी वंश का अन्य नरेश, सोमेश्वर प्र० त्रैलोक्यमल्ल आहवमल्ल (१०४२-६८ ई०), जो जयसिंह द्वि. जगदेकमल्ल (१०१४-४२ ई० ) का पुत्र एव उत्तराधिकारी था, जैनधर्म का प्रश्रयदाता था, बल्कि एक शि. ले में उसे स्याद्वादमत (जैनधर्म) का अनुयायी लिखा है, उसने कई जिनमन्दिर निर्माण कराये, १०५५ ई० में जंनगुरु इन्द्रकीर्ति को दान दिया, जैनाचार्य अजितसेन पंडित वादिधरट्ट (वादीभसिंह) का 'शब्दचतुमुख' उपाधि प्रदान करके सम्मान किया, १०५४ ई० में त्रिभुवनतिलक - जिनालय के लिए महासेन मुनि को दान दिया, जातकतिलक (१०४९ ई०) नामक ज्योतिषशास्त्र के रचयिता जैनगुरु श्रीधराचार्य, गण्डविमुक्त रामभद्र, आदि अन्य जैन सन्तों का भी सम्मान किया था उसने १०६० ई० में तुंगभद्र में जन्नसमाधि ले ली थी। होयसल नरेश विनयादित्य द्वि० उसका सामन्त था । [ प्रमुख. १२०; भाइ ३१६-३१७; देसाई. २११; मे. ५१-५३; एक. ii. ६७; जैशिसं. - ५४; ॥ - २०४, २१३ - ३१७, ४०६, ४५२; iv १३०-१३१] ३. कलचुरिवंश के एक नरेश, रामनारायण आहवमल्ल का उल्लेख १९५२ ई० के एक थि. ले. में हुआ है। वह शंकम कलचुरि का अनुज एवं उत्तराधिकारी था। [जेशिसं. iii४०८; एक. vii. १९७.] ऐतिहासिक व्यक्तिकोश १११
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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