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________________ मामुष्या शांकमारी के पुण्यात्मा श्रेष्ठ जासठ की धर्मात्मा भार्या, ल. ११०० ई.। [प्रमुख. २०६] मामोहिनी- हारीतिपुत्र पाल की भार्या श्रमणमाविका कौत्सी बामोहिनी, जिसने अपने पालघोष, प्रोस्थाघोष तथा धनषोष नामक पुत्रों के महयोग से, मथुरा में, स्वामी महाक्षत्रप शोडास के शासनकाल में, ईसापूर्व २४ मे, आर्यवती (तीर्थकर-जननी) की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। [प्रमुख. ६५-६६ ; जैशिसं ii. ५; एई..१४२] -पाठान्तर अमोहिनि । मानदेवमूरि--१. श्वे. बडगच्छोय जिनचन्द्रसूरि के शिष्य, नेमिचन्द्रसूरिकृत व्याख्यानमणिकोश की टोका (११३३ ई.) के कर्ता। २. जिनके उपदेश से चित्तौड़ मे, राणा कुम्भा के राज्यकाल मे, १४५७ इ. मे, साह हरपाल ने २१ जैन देवियों को मूर्तियां स्थापित कराई थीं। [प्रमुख. २५४] आम्रमट- अम्गड, गज्यमन्त्री, मन्त्री उदयन का पुत्र -दे अम्बर । किंच. २१४] बिजौलिया के पार्श्वनाथमदिर के निर्माता प्राग्वाटवंशी दिग. श्रावक सेठ लोलाक का एक धर्मात्मा पूर्वज, शुभंकर का पौत्र और जासट का पुत्र -शि. ले. ११७० ई०। [शिसं. iv. २६५] बाय गावंड- चालुक्य जगदेकमल्ल प्र० की एक प्रादेशिक प्रशासिका रेवकब रसिका एक राज्याधिकारी था और यापनीयसघ के जयकाति विद्यदेव के सुप्रसिद्ध शिष्य नागचन्द्र सिद्धान्ती का गहस्थ शिष्य था। उसने अपनी स्वर्गीय भार्या कञ्चिकम्बे की स्मृति में अपनी जन्मभूमि पोसबूर में एक भव्य जिनालय निर्माण कराकर, उसके लिए स्वगुरु को. १०२८-२९ ई. में, सुपारी-उद्यान तथा अन्य भूसम्पत्ति पादप्रक्षालन पूर्वक समर्पित की थी। यह दिग. श्रावक अपनी धार्मिकता के लिए प्रसिद्ध था। [देसाई. १४१. १४२; जैशिसं. iv १२५] मायचपब हनगंद के १०७४के शि. ले. में उल्लिखित दानदाताओं में से एक यह करण (लेखाधिकारी) भी पा। [शिसं. iv. १५८] ऐतिहासिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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