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________________ [माई. २२० ] मुनिगण्ण के पुत्र, स्वयं चन्द्र कोर्ति के शिष्य कादि मट्टारक-- प्रथम तीर्थंकर बादिनाथ- ऋषभ । नादियण्य--- ear कवि, दिग. श्रुतयति के ग्रहस्थशिष्य ब्रह्म, चन्द्र और विजयप्प के भाई, प्रभेन्दु मुनि के गृहस्थ शिष्य थे । ल. १६५० ई० में गेरसोध्पे नरेश भैरवराय के गुरु बीरसेन की आज्ञा से easerव्य धम्यकुमार चरित की रचना की थी। गेरसोप्पे के १४८१ ई० के शि. ले. में उल्लिखित पायं-प्रतिष्ठा कराने वाली जक्कबरसी के पति मंगभूप का अपरनाम । [जैशिसं. iv ४३३] श्रीपालचरित्र (हिन्दी) के रचयिता । भविराज- आबिसागर - आविसेट्टि - आविसेन १. अनंतक सेट्टिति के पुत्र ने ल. १४वीं शती में माबिनकेरे में चौबीसी को स्थापना की थी। [जैशिसं. iv . ४१९] २. के पुत्र बोम्मरसेट्टि ने शृंगेरी में १५२३ ई० में चन्द्रनाथ प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। [शिसं. iv ४६५ ] या आद्यन्तसेन, काष्ठासंघ नदीतटगच्छ विद्यागण - रामसेनान्वय के भ. यश: कीर्ति के शिष्य और ब्रह्म कृष्णदास (१६२४ ई० ) के गुरु म. रत्नभूषण के प्रगुरु थे 1 [ प्रज. ४०-४२ ] अभिनव - दे. अभिनव मादिसेन । दे. मणीराज चौहान । [कंच. १९] ९ पौराणिक बलभद्रों में छठे बलभद्र । [जैशिस. iv. ५३२ ] आविसेन भट्टारक अन्नलदेव आनन्द--- मानन्द मानव- आनन्द--- महावीर तीर्थ के दश अनुत्तरोपपादकों में से पांचवे । उपासक दशांग सूत्रानुसार ती. महावीर के दश परमभक्त सद्श्रावकों में प्रथम, वाणिज्यग्राम का प्रधान घनाधीश, नगरसेठ एवं राज्यसेठ गृहपति आनन्द और उसकी धर्मपत्नी शिवानन्दा तीर्थकर के उपदेश एवं प्रभाव से जैनधर्म अंगीकार करके परिग्रह परिमाण व्रत के धारक आदर्श लोकोपकारी सद्भावक बने थे । [प्रमुख. २१-२२ ] जयसिंह सिद्धराज सोलंकी का जैन पृथ्वीपाल महाराज कुमारपाल [ गुच. २६० । ऐतिहासिक व्यक्तिकोष राज्यमंत्री । उसका पुत्र का राज्यमंत्री था 1 ९५
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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