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________________ मसवाल दुष- अपभ्रम्ह भाषा के सुकवि ने, १४२२६० में, कुशार्तदेशस्थ कर. हल के पौहान राजा भोजराज के जैनमन्त्री अमरसिंह के पुत्र लोणासाहु के लिए पासणाहचरिउ (पाश्वनाथ चरित्र) की रचना की थी। [प्रवी. ii. १०१ प्रमुख. २४९ -वस्तुतः लोणासाह ने अपने भाई सोणिग के हितार्थ यह अन्य लिखाया था। उस समय भोजराज के पुत्र संसारचन्द (पृथ्वी. सिंह) का शासन चल रहा था। बसियाल महिलसेटि- पश्चिमी चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य के राज्यकाल (१२वीं शती ई.) के एक शि. ले. में उल्लिखित एक धनी जैन व्यापारी, जिसने जिनमन्दिर निर्माण कराया था और प्रभूत दान दिया था। [देसाई. १.४] महिवान- वादिदेवसूरि का भक्त मागोर नरेश, ल. १२००ई० [कंच.२०१६) महोबल पण्डित- जिन्हें, होयमल नरेश नरसिंहदेव प्र. के शासनकाल में, ११६.६० में, जैन सामन्त लोकगड एवं माकवे गडि की पुत्री घट्टवे गवंड के पुत्र होयसलगवंड ने अपनी माता की स्मृति में जिनालय बनवाकर, तदर्थ भूमि बादि दान दिया था। यह गुरु मिलसंची श्रीपालनविय के प्रशिष्य और वासुपूज्यव्रती के शिष्य थे। [शिसं. iii. ३५१; एक.vi. ६९] आ माइन्याम्बा- दे. आदित्याम्बा, अपभ्रश के महाकवि स्वयंभू की पत्नी, कवि की रामायण के अयोध्याकाण्ड के लिखने में प्रमुख प्रेरक । [जैसाइ. ३७४] माकलपेअम्बे-कुन्दकुन्दान्वय के सोमदेवाचार्य की शिष्या आयिका, जिमने १२६७ ई० में अणिगेरि (धारवाड़, मैसूर) में समाधिमरण किया था। [शिसं. iv. ३४३] बाकिय मंगिसेद्वि- जिसके पुत्र गुम्मिसेट्टि ने १४६३ १. में चित्तलद्रुग में समा. धिमरण किया था। [शिसं iv. ४४२] मानमभी माविका- मूलनन्दिसंघ के भ. जिनचन्द्र के शिष्य सिंहकीर्ति की ८८ ऐनिहामिक व्यक्तिकोष
SR No.010105
Book TitleJain Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyoti Prasad Jain
PublisherGyandip Prakashan
Publication Year1988
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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