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________________ ( ७४ ) के साथ ही अनन्त सुख की भी उपलब्धि होती है। भक्त अथवा पूजक सिद्ध भक्ति में इतना तन्मय हो जाता है कि वह उनके गुणों का गान करता हुआ स्वयं उनके निकट पहुँचने की कामना कर उठता है । # श्रति भक्ति भूत का अर्थ है- सुना हुआ । गुरु शिष्य परम्परा से सुना हुआ समूचा ज्ञान ज्ञान कहलाता है। शास्त्रों में शवित होने के पश्चात भी वह श्रुतज्ञान ही कहा जाता रहा। जैनाचार्यो के अनुसार वे समप्रशास्त्र वस्तुतः भुत कहलाते हैं जिनमें भगवान को दिव्य-ध्वनि व्यंजित है ।" आगम वाणी का संकलन ही भुत कहलाता है । आत्मा ज्ञानस्वरूप है। श्रुत भी एक प्रकार से ज्ञान है। श्रुतज्ञान आत्मज्ञान में सहायक होता है। श्रुतज्ञान और केवलज्ञान में पदार्थ विषय की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। हाँ प्रत्यक्ष और परोक्ष भेद से अवश्य अन्तर परिलक्षित है । आचार्य सोमदेव श्रुत भक्ति को सामायिक कहते है। श्रुत भक्ति की उपासना अष्टद्रव्य से करने की स्वीकृति दी है। सरस्वती की भक्ति से अन्तरंग में व्याप्त अज्ञानान्धकार का पूर्णतया विसर्जन होता है।* श्रुत के १. सब इष्ट अभीष्ट विशिष्ट हितू । उत् किष्ट वरिष्ट गरिष्ट मितू ।। शिव तिष्ठत सर्व सहायक हो । सब सिद्ध नमों सुख दायक हों ॥। - श्री सिद्धपूजा, हीराचन्द, भारतीय ज्ञानपीठ पुष्पाजलि, भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्ड रोड, वाराणसी प्रथम सस्करण १६५७, पृष्ठ १२१ । २. ऐसे सिद्ध महान, तिन गुण महिमा अगम है । वरनन को बखान, तुच्छ बुद्धि भविलालजू ॥ करता की यह बिनती सुनो सिद्ध भगवान । मोहि बुलालो आप foग यही अरज उर आन ॥ श्री सिद्ध पूजा, भविलालजू, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटिल र्क्स, अलीगढ़. प्रथम संस्करण १९७६, पृष्ठ ७६ । ३. आप्तोपज्ञमनुल्लंघ्यमदृष्टेष्ट - विरोधकम । तत्वोपदेशकृत् सार्व शास्त्र का पथ चट्टनम् ।। - समीचीन धर्मशास्त्र, आचार्य समन्तभद्र, सं० जुगलकिशोर मुख्तार, वीर सेवा मंदिर, दिल्ली, प्रथम संस्करण १९५५, पृष्ठ ४३ । ४. स्याद्वाद भूधरभवा मुनिमाननीया देवेरनन्य शरणैः समुपासनीया । स्वान्ताश्रिताखिलकंलकहर प्रवाहा वागापगास्तु मम बोध गजावगाहा || - यशस्तिलक, आचार्य सोमदेव, काव्यमाला ७० बम्बई, प्रथम संस्करण सन् १६०१, पृष्ठ ४०१ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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