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________________ ( ७३ ) वसन, मान, बीर्य, समता, अवगाहन, मगुरुलघु और मध्यावाध नामक इन अष्टभागों में विभाजित किया गया है।' सिड और अरहन्त में अन्तर स्पष्ट करते हुए अनशास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है। आठ कर्म-कुल का नाश होने पर सिख-पत्र प्राप्त होता है जबकि चार घातिया कर्मों का भय करने से ही महत्त्व उपलब्ध हो जाता है।' अर्हन्त सफल परमात्मा कहलाते हैं। वे शरीरधारी होते हैं जबकि सिट निराकार होते हैं। सिद्ध अरहन्तों के लिए पूज्य होते हैं। सिडों की भक्ति से परम शुद्ध सम्यमान प्राप्त होता है। सिखों को बंदना करने वाला उनके अनन्त गुणों को सहज में ही पा लेता है। उनकी भक्ति मात्र से ही भक्त उनके पक्ष को सहज में प्राप्त कर सकता है।' सिडों को भक्ति से सम्यक् दर्शन, सम्यक् शान और सम्यक् चारित्र रूप तीन प्रकार के कल्याणकारी रस्न उपलब्ध होते हैं। जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में सिड की महिमा का प्रतिपादन हुआ है। उनकी बन्दना में अनेक काव्य रचे गए हैं। इन काव्यों में सिडों की भक्ति करने से परम शुद्धि तथा सम्यक ज्ञान की प्राप्ति का उल्लेख मिलता है। केवल मान १. संमत्त गाण दसण वीरियसुहुमं तहेव अवगहणं । अगुरुलहुमव्वाबाहं अट्ठगुणा होति सिद्धाणं । -सिद्धमक्ति, गाथा ८, दशाभक्त्यादिसंग्रह, सिख सेन गोयलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल (साबर मांठा), गुजरात, पृष्ट ११४ । २. जैन भक्ति काव्य की पृष्ठभूमि, डॉ० प्रेमसागर जैन, भारतीय मानपीठ काशी, प्रथम संस्करण १९५३, पृष्ठ ६६ ।। ३. कृत्वा कायोत्सर्ग चतुरष्टदोषविरहित सुपरिशुद्धम । अतिभक्ति संप्रयुक्तो यो वंदते स लघु लभते परमसुखम् । -सिबभक्ति, दशभक्त्यादिसंग्रह, सम्पा. श्री सिद्धसेन जैन गोवलीय, अखिल विश्व जैन मिशन, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, पृष्ठ ११२ । ४. कामेषु त्रिपुमुक्ति संगमजुषः स्तुत्यास्त्रिविष्टपेस्ते रलत्रय मंबनानि बचतां भव्येषु रत्नकराः। -~~-यमस्तिलक ऐड इंडियन कल्बर, प्रो० के० के० हेण्डीकी, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, प्रथम संस्करण १६४६, पृष्ठ ३११ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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