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________________ ( ३२ ) प्रातिहार्य शम्य पारिभाषिक है। जनवर्शन में इसका अभिप्राय है विन्य महत्वशाली पदार्थ । भगवान के आठ प्रातिहार्य उल्लिखित हैं। यथा १. अशोक वृक्ष । २. तीन छत्र। ३. रत्नखचित सिंहासन । ४. भक्तियुक्त गणों द्वारा वेष्ठित रहना अर्थात् मुख से विस्यवाणी प्रकट होना। ५. बुन्दभि नाव। ६. पुरुष-वृष्टि। ७. प्रभामण्डल। ८. चौसठ चमरयुक्तता।' जंन हिन्दी पूजाकाव्य में केवल ज्ञानी तोर्यकर-वन्दना प्रसंग में उनमें विधमान छियालीस गुणों को अभिव्यंजना हुई है। अठारहवीं शती से लेकर बीसवीं शती तक पूजा-काव्य में छियालीस गुणों की चर्चा हुई है। अठारहवीं शती के कविवर धानतराय प्रणीत 'श्री देवपूजा भाषा' के जयमाल अंश में जिनेन्द्र में छियालीस गुणों का उल्लेख किया गया है। उन्नीसवीं शती के कविवर बसतावर रत्न विरचित 'श्री धर्मनाथ जिनपूजा' में जयमाल प्रसंग में तोषंकर के गुणों में छियालीस गुणों की चर्चा बड़े महत्व की है। पूजक ऐसे दिव्यगुणधारी जिनेन्द्र की उपस्थिति को कल्याणकारी मानकर पूजा करता है।' १. जंबूदीव पण्णत्ति संगहो, अधिकार संख्या १३, गाथा संख्या १२२-१३० जैन संस्कृति संरक्षण संघ, शोलापुर, वि० सं० २०१४ । २. गुण अनंत को कहि सके छियालीस जिनराय । प्रगट सुगुन गिनती कहूं, तुम ही होहु सहाय ॥ --श्री देवपूजा भाषा, द्यानतराय, वृहत जिनवाणी संग्रह, पंचम अध्याय, सम्पादक-प्रकाशक-पन्नालाल वाकलीवाल, मदनगंज, किशनगढ़, राजस्थान सन् १९५६, पृष्ठ ३०२। गुण छालिस तुम मांहि विराजे देवजी, तितालिस गण ईश कर तुम सेव जी। भव्य जीव निस्तारन को तुमने सही, करो विहार महान आर्य देशन कही। -श्री धर्मनाथ जिनपूजा, बख्तावरत्न, वीरपुस्तक भण्डार, मनिहारों का रास्ता, जयपुर, सं० २०१८. पृष्ठ १०४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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