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________________ ( २४ ) कृत 'श्रीं कुम्बुनाथ जिनपूजा" में अठारह दोष राहित्य जीवनोत्कर्ष की अभिव्यंजमा परिलक्षित है। इसी प्रकार बीसवीं शती में कविवर सच्चिदानन्द कृत 'श्रीपंचपरमेष्ठीपूजा' में, कविवर हीराचन्द्र कृत 'श्री चतुविंशतितीर्थंकरसमुच्चयपूजा' में', कवि श्री कुंजीलाल विरचित 'श्री देवशास्त्र गुरुपूजा' में अठारह दोषों का उल्लेख हुआ है । ' जैन हिन्दी पूजा काव्य में आत्मा के गुणों का घात करने वाले घाति कर्म-ज्ञानावरणी कर्म, दर्शनावरणी कर्म, अन्तरराय कर्म तथा मोहनीय कर्म हैं उनका निरवशेष रूप से प्रध्वंस कर देने के कारण जो निःशेष दोष रहित हैं अर्थात् अठारह महा दोषों से मुक्त हो चुके हैं, ऐसे परमात्मा अर्हत् परमेश्वर हैं । १. दोष अठारह यातें होवें, क्षुधा तृपति ना नित खाते । सद घेवर मोदक पूजन ल्यायो, हरो वेदना दुख यातें ॥ - श्री कुन्थुनाथ जिनपूजा, कवि रामचन्द्र, नेमीचन्द्र, वाकलीवाल जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, राजस्थान, प्रथम संस्करण १६५१, पृष्ठ १४५ । २. जयी अष्टदश दोष अर्हतदेवा, करें नित्य शतइन्द्र चरणों की सेवा । दरश ज्ञान सुख नत वीरज के स्वामी, नसे घातिया कर्म सर्वज्ञ नामी । - श्री पंचपरमेष्ठी पूजा, सच्चिदानन्द, नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, दि० जैन उदासीन आश्रम, ईसरी बाजार, हजारी बाग, सं० २४८७, पृष्ठ ३४ । ३. घाति चतुष्टय नाशकर, केवल ज्ञान लहाय । दोष अठारह टार कर, अर्हत् पद प्रगटाय ॥ - श्री चतुविंशति तीर्थंकर समुच्चय पूजा, कविवर हीराचन्द्र दि० जैन उदासीन आश्रम, ईसरी बाजार, हजारी बाग, सं० २४८७, पृ०७४ | ४. यह शान्ति रूप मुद्रा नैनों में आ समाई । अरहन जिनेन्द्र भगवन् तुम विश्व विजयराई || चारों करम विनाशे त्रेसठ प्रकृति नसाई । यह दोष अठारह को जीते तुम्हीं जिनराई ॥ -- श्री देवशास्त्र गुरुपूजा, कुंजीलाल, वही पृष्ठ ११५ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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