SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८ ) कार्मा वा कर्मरूप परिणमित होकर आत्मा से सम्बद्ध हो जाती है, उन्हें द्रव्य कर्म कहते हैं ।" जनदर्शन में आठ प्रकार के कर्मों का उल्लेख हुआ है। इन्हें दो भागों में विभाजित किया गया है। यथा १. घातिया कर्म, २. अघातिया कर्म । धातियाकर्म जीव के अनुजीवी कर्मों को घात करने में निमित्त होते हैं, मे वस्तुतः घातिया कर्म कहलाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं; यथा २. ज्ञानावरणी - वे कर्म परमाणु जिनसे आत्मा के ज्ञान स्वरूप पर आवरण हो जाता है अर्थात् आत्मा अज्ञानी दिखलाई देती है, उसे ज्ञानावरणी कर्म कहते हैं । २. दर्शनावरणी -- वे कर्म परमाणु जो आत्मा के अनन्त-दर्शन पर आवरण करते हैं, वर्शनावरणी कर्म कहलाते हैं । ३. मोहनीय --- वे कर्म परमाणु जो आत्मा के शान्त आनन्दस्वरूप को विकृत करके उसमें क्रोध, अहंकार आदि कषाय तथा राग-द्वेष रूप परिणति उत्पन्न कर देते है, मोहनीय कर्म कहलाते हैं । ४. अन्तराय-वे कर्म परमाणु जो जीव के दान, लाभ, भोग, उपभोग और शक्ति में far उत्पन्न करते हैं, अन्तराय कर्म कहलाते हैं । अघातिया कर्म के अनुजीवी गुणों के घात में निमित्त नहीं हुआ करते हैं। ये भी चार प्रकार के होते हैं। यथा १ वेदनीय-- जिनके कारण प्राणों को सुख या दुःख का बोध होता है, वेदनीय कर्म कहलाते हैं । २. आयु — जीव अपनी योग्यता से जब नारकी, तियंच, मनुष्य या देव शरीर में रुका रहे तब जिस कर्म का उदय हो उसे आयुकर्म कहते है । १. वीतराग-विज्ञान पाठमाला भाग १, पं० हुकुमचन्द भारिल्ल, श्री टोडरमल स्मारक भवन, ए-४, बापू नगर, जयपुर- ४, पृष्ठ २२ । २. 'आद्यो ज्ञान - दर्शनावरण- वेदनीय मोहनीयायुर्नाम गोत्रान्तरायाः ।” -- तत्वार्थ सूत्र, आचार्य उमास्वाति, अध्याय ८, सूत्र ४, जैन संस्कृति संशोधन मंडल, हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस-५, द्वितीय संस्करण सन् १६५२, पृष्ठ २८४ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy