SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) नहीं माना जा सकता । अष्टम से पूजनीय तो वीतराग सर्व श्रीरामो मार्ग के freee शास्त्र तथा नग्न-दिगम्बर भाव-लिंगी गुह ही हैं ज्ञानी जीव लौकिक लाभ की दृष्टि से भगवान की आराधना नहीं करता है । उसमें तो सहज ही भगवान के प्रति भक्ति का भाव उत्पन्न होता है । जिस प्रकार धन चाहने वाले को धनवान की महिमा बाए बिना नहीं रहती, उसी प्रकार वीतरागता के सच्चे उपासक अर्थात् मुक्ति के पथिक को मुक्तामांओं के प्रति भक्ति का भाव आता ही है। शानो-मत सांसारिक सुख की कामना नहीं करते, पर शुभ भाव होने से उन्हें पुष्य-बन्ध अवश्य होता है और पुण्योदय के निमित्त से सांसारिक भोग सामग्री भी उन्हें प्राप्त होती है । पर उनकी दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं । पूजा भक्ति का सच्चा लाभ तो विषय-काय से सर्वथा बचना है । इस प्रकार जैन- हिन्दी- पूजा-काव्य में पूज्य, पूजा और पूजक के उद्देश्य fears ज्ञान का स्पष्टीकरण हो जाने से अब विवेच्य काव्य में प्रयुक्त ज्ञानतत्व के विषय में विवेचना करना असंगत न होगा । " मिथ्याभावों से इच्छाओं और आकांक्षाओं की उत्पति हुआ करती है । संसार के समस्त प्राणी इनकी पूर्ति के प्रयत्न में निरन्तर आकुल व्याकुल रहा करते हैं। इनकी पूर्ति में इन्हें सुख को सम्भावना हुआ करती है। पूजा काव्य में संसारी जीवन-यात्रा का मूलाधार-अष्टकर्मों की चर्चा हुई है।" ये सभी कर्म निमित्त बनकर आत्मा को तबनुसार विकारोन्मुख किया करते हैं । आत्मा का हित निराकुल सुख में हैं पर यह जीव अपने ज्ञान-स्वभावी आत्मा को भूलकर मोह-राग-द्वेष-रूप विकारी भावों को करता है अस्तु दुःखी हुआ करता है । कर्म के उदय में जब यह जीव मोह-राग-द्वेष-रूपी विकारी भावरूप होता है, उन्हें भावकर्म कहते हैं और उन मोह-राग-द्वेष-मानों का निमित्त पाकर १. अष्टकरम बन जाल, मुकति माँहि तुम सुख करी । खेऊँ धूप रसाल, मम निकाल वन जाल से || - श्री बृहत् सिद्धचक पूजा भाषा, द्यानतराय, जैन पूजा पाठ संग्रह, नं० ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकता ७, पृष्ठ २३७ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy