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________________ भानावरणी अणुप्रती सम्बन्टि हो जायक कहते हैं। लक्ष्मीबीच। कर्म परमाण जिनसे बात्मानस्वरूप पर बावरण हो जाता है अर्थात बालमानी विद्यलाई देता है उसे शामाबरनी कर्म कही। प्राण, अजपा, हं-श्वास लेने के समय की ध्वनि, स:-श्वास छोड़ने के समय को नि, इन दोनों का अयं 'सो अहम्' या महम् सः हुमा, प्रत्येक व्यक्ति दिन-रात में २१६०० सास लेता है, यानी अजपा जाप करता है। माया बीज, मन्त्रराज, ह्रींकार को २४ तीर्थकरों की शक्ति से समन्वित माना ज्या है, समस्ता, शिवा, सर्वतोमय, संवैमन्त्रमय, सिचाप, इसीलिए "ओं ह्री नमः" को मन्त्राभिराज कहा गया है, इसे 'आत्मबीज' भी कहा गया है, बत: इसका उपांशु माप करना चाहिए। DOOOD
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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