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________________ स्वाहा साधु सिद्ध सिद्धपूजा सिद्धक्षेत्र सिहासन सोलहकारण सोलहस्वप्न ( ३८३ ) शान्ति बीज, सर्वदर्शी, अग्नि-पत्नी, नाद शब्द में अग्नि सम्मिलित है- ( न = प्राण, द अग्नि), परम्परा से मन्त्र स्वाहाकार से रहित होता है जिसके अन्त में स्वाहाकार होता है वह विद्या है, देवोदन से हवि (द्रव्य) चढ़ाना | जो सम्यक् दर्शन, ज्ञान से परिपूर्ण शुद्ध चारित्र्य को साधते हैं, सर्वजीवों में समभाव को प्राप्त हो वे साधु कहलाते हैं । जिन्होंने चार अघातिया कर्मों का नष्ट कर मोक्ष पा लिया है, सिद्ध कहते हैं । सिद्ध परमेष्ठी की पूजा, सिद्धचक्र पूजा । पाँच कल्याणकों में से मोक्ष कल्याणक जिस स्थल, क्षेत्र में सम्पन्न होता है उस क्षेत्र को सिद्धक्षेत्र कहते हैं । मूलपीठ से लाकर जिस आसन पर जिनबिम्ब को स्थापित विराजमान किया जाता है । भावना पुण्य-पाप, राग-विराग संसार व मोक्ष का कारण है, जीव को कुत्सित भावनाओं का त्याग कर उत्तम भावनाओं का चितन करना चाहिए, जिनवाणी में सोलह भावनाओं का उल्लेख है, इन भावनाओं का चितन सिद्ध फल का कारण है, अतः इन भावनाओं को सोलह कारण कहा गया है । सोलह स्वप्न जैनधर्म में प्रतीकात्मक शब्द है । यहाँ तीर्थकर जीव गर्भ में आने पर तीर्थंकर की म सोलह प्रकार के स्वप्न देखती हैं, ये स्वप्न इस प्रकार हैं- हाथी, बल, सिंह, पुष्पमाला, लक्ष्मी, पूर्णचन्द्र, सूर्य, युगल कलश, युगल मछली, सरोवर, समुद्र, सिंहासन, देवविमान, नागेन्द्र भवन, रत्नराशि, अग्नि; यह स्वप्न महत्वपूर्ण है तथा जीव के तीर्थंकर होने की भविष्य वाणी करते हैं ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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