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________________ यह माय स्वाति नाम का बल पाता है। यह गौर और सौर को गमअलग करने में भी प्रवीण होता है। हिन्दी बार मय में चातक पक्षी का व्यवहार निम्न सदनों में हुआ है१. पुनर्षम्म विश्लेषण सम्बर्म में २. आलंकारिक प्रयोग में ३. प्रति वर्णन के लिए अन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के पूजा-कवि मनरंगलाल विरचित 'मी नेमिनाथ जिनपूजा' नामक रचना में चित के लिए पातक का प्रयोग द्रष्टव्य है।' चमर-यदि कोट परक पक्षी है। इसका वर्ग काला होता है। इसकी गुनगुनाहट प्रसिद्ध है। प्रमर का प्रयोग निम्न रूपों में साहित्य में हुमा है १. प्रेम, भक्त के रूप में २. पुणामही के रूप में ३. बालकारिक रूप में ४. प्रकृतिवर्णन में विवेव्यकाष्य में यह पक्षी मगरहवीं शती से प्रयुक्त है। कविवर यानतराय ने 'श्री देवशास्त्रपुर पूजा' नामक कृति में इस पक्षी का सर्वप्रथम उल्लेख मधुपान के लिए किया है। उन्नीसवीं शती के पूजाकार बन्दावन विरचित 'भी चन्द्रप्रभजिनपूजा' नामक रखना में यह पक्षी मलि संज्ञा के साथ गन्धयान के लिए प्रयुक्त है।' १. श्री नेमिचन्द जिनेन्द्र के चरणारविन्द निहारिके। करि चित चातक चतुर चर्चित जजत हूँ हित धारिके । -श्री नेमिनाथजिनपूजा, मनरंगलाम, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३६५ । २. विविध भांति परिमल सुमन, भ्रमर वास अधीन । जासों पूजों परमपद, देवशास्त्र मुख्तीन ॥ -श्रीदेवशास्त्र गुरुभूबा, द्यानतराम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १॥ ३. सखम के सुमन सुरंग, बंधित अलि बाये। -मोपलप्रमजिनपूजा, वृन्दावन, ममयीक पूर्वावधि, पुष ३३५॥
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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