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________________ ( ३५८ ) व्यवहार क्रमशः सुधारूपी उरम एवं कामरूपी नाग को समाप्त करने के लिए हुआ है। atna शती में जवाहरलाल द्वारा गरुड़ पक्षी का प्रयोग सादृश्य मूलक पद्धति में हुआ है। जिस प्रकार सिंह को देखकर हाथी भयभीत होता है उसी प्रकार गर पक्षी को देखकर नाग भयभीत हुआ करता है।' चकोर - यह आकार-प्रकार में बहुत कुछ तीतर नामक पक्षी से समता रखता है । इसका स्वभाव विरोधाभासी है। एक ओर यह शीतल चन्द्रमूयष का प्रेमी है तो दूसरी ओर जलते हुए अंगारे का भी इसी अनोखी प्रवृत्ति के कारण साहित्य में इस पक्षी ने प्रमुख स्थान प्राप्त किया है। लोक में यात्रा के समय चकोर का बोलना प्रायः शुभ माना गया है। 1 जैन-अर्जन साहित्य में चकोर पक्षी का व्यवहार निम्न रूप में द्रष्टव्य है १. आलंकारिक प्रयोग में २. पुनर्जन्म विश्लेषण सन्दर्भ में ३. अनन्य प्रेमी के रूप में ४. प्रसन्न स्वभाव के प्रसंग में ५. सोथंकर के चिन्ह रूप में जैन- हिन्दी- पूजा-काव्य में चकोर पक्षी उम्नीसवीं शती से प्रयुक्त है। इस शती के पूजा प्रणेता वृन्दाबन ने चित के लिए चकोर का व्यवहार 'श्री चन्द्रप्रभजिनपूजा' नामक रचना में किया है ।" areat शती के उत्कृष्ट पूजा रचयिता मिनेश्वरदास बिरचित 'श्री नेमिनाथ जिनपूजा' नामक पूजाकृति में चकोर पक्षी व्यवहुत है ।" चातक - यह एक भारतीय पक्षी है । इसके सम्बन्ध में प्रसिद्धि है कि १. डरे ज्यों नाग गरुड़ को देखि । मजेगज जुस्थ जु सिंहहि पेखि || श्री सम्मेदाचलपूजा, जवाहरलाल, बृह जिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ४८२ । २. जिन चन्द- चरन घर च्यो चहत, चितकोर नचि रचि रुचि । श्री चन्द्रमजिनपूजा, बन्दावन, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३३३ । ३. अविजन सरस चकोर चन्द्रमा, सुख सागर भरपूर । स्वहित निशि दी बढ़ावे जी, जिनके गुण गावँ सुर नरशेषजी । -श्रीनेमिनाथजिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११३ । Bo
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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