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________________ ( ३१६ ) weat शती में जिनेश्वरवाल' और नेम' ने अपनी पूजा काव्य कृतियों में हु'दुभि वाद्य का व्यवहार किया है। निसान - निशाण या निसान को तम्बूरा और चौतारा भी कहा जाता । इसमें चार तार होते हैं । यह तानपूरा अथवा सितारा से मिलता-जुलता । यह लकड़ी का बना होता है। बाएं हाथ से इसे पकड़ कर बाएं हाथ से बजाया जाता है। जोगीजन इस पर ही प्रायः भजन गाते है । यह तार बाय यंत्र है। जैन- हिन्दी- पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि कमलनयन रचित 'श्री पंचकल्याणक पूजापाठ' नामक पूजाकृति में निसान बाक्ययंत्र का प्रयोग द्रष्टव्य है ।" नुपुर - घुंघरू का अपरनाम ही नूपुर है। इसे पैर में बांध कर नृत्य किया जाता है। इसकी ध्वनि मधुर होती है। यह तार बाध्य है । 'कृष्ण-विबाणी' मीरा का तो यह प्रिय वाक्य है । १. जिनके सन्मुख ठाढे इन्द्र नरेन्द्रजी । नभ में दुन्दुभि को धुनि भारी ॥ वर्षे फूल सुगन्ध अपारी । जिनके सम्मुख ठाढ़े इन्द्र नरेन्द्र जी ॥ - श्री नेमिनाथ जिनपूजा, जिनेश्वरदास, जैमपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ ११४ । २. भामण्डल की छवि कौन गाय । फुनि चंवर तुरत चोसठि लखाय ॥ जय दुन्दुभि रव अद्भुत सुनाय । जय पुष्प वृष्टि गन्धोदकाय || - - श्री अकृत्रिम चैत्यालयपूजा, नेम, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २५५ । ३. बाजन अधिक बजाय गाय गुण सार जू । भेरि निसान सु झांझ झना झनकार जू ।। विधि संक्षेप कही पूजा की सार जू । इन्द्रध्वज आादिक जे बहु विस्तार जू ।। - श्री पंचकल्याणक पूजापाठ, कमलनयन, हस्तलिखित |
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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