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________________ ( ३१५ ) शती के कवि जवाहरवास हारा पूजाकाम्य में इसका सफलता पूर्वक प्रयोग हुना है। मि-शुभि या नगाड़ा या का बाल बाप है। यह वाय एक ओर से मढ़ा होता है और लकड़ी की चोट से बजाया जाता है। पुमि में लकड़ी द्वारा भयंकर चोरें पड़ा करती हैं। नौबत या नगाड़ा प्रायः एक से हो होते है । शादी-संस्कारों तथा नौटंकी-नाचों में यह अधिक बजाया जाता है। इसी को अपरात्री पर्याय 'नगाड़ी' कहलाती है। हुंदुभि वाद्य का प्रयोग हिन्दी-साहित्य में बादलों की गर्जन के लिए सेनापति के अतिरिक्त अन्य अनेक कवियों ने किया है। बुभि के प्रयोग की परम्परा बारहमासा काव्य रूप में भी परिलक्षित है।' जन-हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती के कवि बावन प्रणीत भी चनप्रम जिन पूजा' नामक पूजाकृति में इंदुभि मोर नगारे राम उल्लिखित है।' - - १. मुरली बीन बजे धुनि मिष्ट । पटहा तूर सुरान्वित पुष्ट । सब सुरगण थुति गावत सार । सुरगण नाचत बहुत पुकार ।। --श्री अप समुच्चयलघुपूजा, जवाहरदास, बृहजिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ४६६ । २. हिन्दी का बारहमासा साहित्य : उसका इतिहास तथा अध्ययन, चतुर्ष अध्याय, गे० महेन्द्रसागर प्रचंडिया, पृष्ठ ३३८, पैराग्राफ ४२७ । ३. दुंदुभि नित बाजत मधुर सार । मनु करत जीत को है नगार ॥ मिर छत्र फिर अय भवेत वर्ण । मनु रतन तीन प्रय ताप हर्ण ।। -श्री चन्द्रप्रभु जिनपूजा, वदावन, मानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३३८ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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